आजादी को छ: दशक बीत चुके हैं, प्रतिवर्ष बजट मे नयी-नयी योजनाओं का आगाज होता है। फ़िर वही नारे लगते हैं गरीबी हटाओ, गरीबी हटाओ। मानवाधिकार की बाते गर्माती हैं वातावरण को 2 रु किलो गेंहुँ-चावल बांटने की योजना का शुभारंभ होता है, कोई भुखा नही मरेगा।
सबको रोटी कपड़ा मकान उपलब्ध होगा। कुकुरमुत्ते की तरह गली-गली मे उग आई हैं स्वयं सेवी संस्थाएं। जिसे NGO कहा जाता है। सेवा के नाम पर नोट बटोरे जा रहे हैं। वृद्धाश्रम भी खोले जा रहे हैं, जहां पर निराश्रित वृद्ध रह कर अपने जीवन के बाकी दिन काट सकें। लेकिन यह सब सेवा कागजों मे ही हो जाती है।
मानव और पशु मे कोई अंतर नही है। इसका एक उदाहरण मैने रायपु्र रेल्वे स्टेशन मे देखा जहाँ एक वृद्ध महिला प्लेटफ़ार्म पे पड़ी थी और गाय उसको चाट रही थी और वह गाय को।
लोग भीड़ लगा कर इस दृष्य को देख रहे थे। इन्सान और जानवर मे फ़र्क करना मुश्किल था। यह जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन है।
सबको रोटी कपड़ा मकान उपलब्ध होगा। कुकुरमुत्ते की तरह गली-गली मे उग आई हैं स्वयं सेवी संस्थाएं। जिसे NGO कहा जाता है। सेवा के नाम पर नोट बटोरे जा रहे हैं। वृद्धाश्रम भी खोले जा रहे हैं, जहां पर निराश्रित वृद्ध रह कर अपने जीवन के बाकी दिन काट सकें। लेकिन यह सब सेवा कागजों मे ही हो जाती है।
मानव और पशु मे कोई अंतर नही है। इसका एक उदाहरण मैने रायपु्र रेल्वे स्टेशन मे देखा जहाँ एक वृद्ध महिला प्लेटफ़ार्म पे पड़ी थी और गाय उसको चाट रही थी और वह गाय को।
लोग भीड़ लगा कर इस दृष्य को देख रहे थे। इन्सान और जानवर मे फ़र्क करना मुश्किल था। यह जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन है।
वादे, वादे के लिये होते है
जवाब देंहटाएंविसंगतियाँ हर जगह हैं
उफ्फ!!!
जवाब देंहटाएंयहां इन्सान की क़ीमत कुछ भी नहीं.
जवाब देंहटाएंएक कवि की पंक्तियाँ याद आ गईं,,,,
जवाब देंहटाएंचीनो अरब हमारा ,हिन्दोस्ताँ हमारा
रहने को घर नहीं है ,सारा जहाँ हमारा ।
"सेवा के नाम पर नोट बटोरे जा रहे हैं।"
जवाब देंहटाएंआज नोट बटोरना ही तो इन्सान का ध्येय बन गया है, सेवा तो बस दिखावा है।
एक माँ अपने बेटे का दर्द बाँट रही है? जो बिस्लरी की बोतल में शायद नल का भर या शराब भर पी गया होगा।
जवाब देंहटाएंसही कहा...सरकार का नया कोई भूखा नहीं मरेग..जिन्दा तो रह सकता है।
जवाब देंहटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंबहुत दर्दनाक है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ओह्ह... बहुत ही मार्मिक ...
जवाब देंहटाएंअब क्या कहें! इन्सान और पशु का भेद ही मिटता जा रहा है.....
जवाब देंहटाएंओर यह जानवर उस इंसान से पुछ रहा है इस देश मै तेरे ओर मेरे मै क्या फ़र्क है? तुझे भी मां कहते है, ओर मुझे भी गाऊ माता कहते है, क्या यही इज्जत है एक मां की.....
जवाब देंहटाएंइन नेताओ को जब अपनी ओकात ही भुल गई तो कोई क्या कहे... इन्हे शर्म बिलकुल नही
वाकई अंतर करना मुश्किल है...बेहद मार्मिक.
जवाब देंहटाएंbahut hi marmik drishya....
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक दृश्य है।
जवाब देंहटाएंमार्मिक दृश्य है...
जवाब देंहटाएंनि:शब्द.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक दृश्य है।
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