गुरुवार, 18 मार्च 2010

प्रख्यात चि्त्रकार डॉ डी. डी.सोनी से एक साक्षात्कार-1

मित्रों आज मै आपका परिचय भारत के प्रसिद्ध चित्रकार एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व डॉ.डी.डी. सोनी जी करवा रहा हूँ। इन्होने चित्रकला के क्षेत्र मे नए सोपान गढे हैं तथा अपनी जीवन यात्रा मे काफ़ी संघंर्ष किया है। 

परम्परागत रुप से की जाने वाली चित्रकारी से लेकर आधुनिक चित्रकला के क्षेत्र मे इन्होने हाथ आजमाया तथा सफ़लता भी मि्ली। आज इनकी पेंटिग लाखों में बिकती है। 

इनसे बहुत सारे नए चित्रकार चित्रकला की बारीकियाँ सीखने आते हैं, उन्हे सहज भाव से समझाते हैं। इन्होंने बहुत सारी विधाओं पर काम किया है जैसे लैंड स्केप, पोट्रेट, लाईव, मार्डन पेंटिग,मिनिएचर, ड्राईंग प्रोसेस, पैचवर्क, नाईफ़ पैंटिग इत्यादि। 

जब हम इनके स्टुडियों मे पहुँचे तो देखा पेंटिंग्स का अम्बार लगा है। शायद ही ऐसा कोई विषय होगा जिस पर इनकी तुलिका ने अपना कमाल नही दिखाया होगा। आप चित्र कला के क्षेत्र मे सन्1962 से साधना रत हैं। इन्होने भारत के कई प्रसिद्ध चित्रकारों के साथ काम किया है।

मैने इनका एक साक्षात्कार ही ले लिया जिसे अपने ब्लाग पर प्रसारित कर सकुं। यह साक्षात्कार कुछ लम्बा है इसलिए किश्तों मे ही प्रकाशित कर रहा हूँ ------ इससे पहले चार पंक्तियाँ चित्रकार के विषय मे कहना चाहता हूँ।
दिल का दर्द आंखों से नीचो कर इत्र बनता है,
लाखों में कोई एक हमदर्द,सच्चा मित्र बनता है।
गालिब की गजल,मीरा का विरह रगों मे घोलकर,
कतरा कतरा आंसुओं से ही एक चित्र बनता है।।

उनसे मेरा पहला प्रश्न---
ललित डॉट कॉम--- डी डी सोनी जी आपका स्वागत है-- आपने चित्रकारी कब से प्रारंभ की?
डी डी सोनी जी-- ललित भाई! आज बड़ा सौभाग्य है कि एक आर्टिस्ट दुसरे आर्टिस्ट का ईंटरव्यु ले रहा है, नही तो जहां तक देखा जाता है या तो प्रत्रकार इंटरव्यु लेता या ऐसा व्यक्ति इंटरव्यु लेता है जिसको इस विधा के विषय मे कोई जानकारी नही है। वह ऐसे सवाल पुछ देता है कि जिसका संबंध ही इस विधा से नही है और सही जानकारी समाज तक नही पहुँच पाती -मैं खुश हुँ कि एक कलाकार ही एक कलाकार का इंटरव्यु ले रहा है।  
अब आपके प्रश्न की ओर चलते हैं--जब मै स्कुल मे पढता था तो पाठ्य पुस्तक निगम की किताबों मे चित्र बने होते थे। जो कविताओं के साथ होते थे तो मै सोचता था कि इस कविता के साथ जो चित्र बना है वह सही नही है। इससे भी कुछ अच्छा बन सकता है, कभी गणेश जी मुर्ति देखता था तो लगता था कि यह तो ऐसे बनाई जा सकती थी, कहीं कैलेंडर देखता था तो लगता था कि इससे और भी अच्छा किया जा सकता था, मतलब कहीं संतुष्टि नही मिलती थी, उसको मै जब भी कापी करता था उसमे अपनी सोच भरने का प्रयास करता था, मेरी रुची मुर्ती कला मे भी रही है, मै जब देखता था तो मुझे मुर्त और अमुर्त के बीच एक गहरी खाई दिखाई देती थी। आम दर्शकों को सुगढ मु्र्तियाँ भाती हैं, लेकिन कोई जाने अनजाने अधुरी मुर्ती की भी तारीफ़ कर देता था तो लगता था कि ऐसा क्यों है लेकिन अधुरी मुर्तियाँ सोचने के लिए कई दिशाएं देती है जबकि पुर्ण मुर्ती में तो कार्य खत्म हो चु्का है उसमे आगे सोचने के लिए कुछ बचा ही नही है। फ़िर इस तरह हमे एक बहुत बड़ा मैदान मिल गया काम करने के लिए।
ललित डॉट कॉम--सोनी जी आपने चित्रकला के साथ मुर्तिकला पर काम किया, आपने बहुत सारे सेट भी डिजाइन किए-मेरा सवाल aयह है कि आपने इसकी कही से विधिवत शिक्षा ली है या ईश्वर प्रदत्त कौशल है?
डी डी सोनी जी --जब मै काम करने लगा तो लोग कहते थे कि मैं परम्परा से हट कर कुछ अलग कर रहा हुँ यह ईश्वर का वरदान है जो मुझे प्राप्त हुआ है। चित्रकार के रुप मे आप अपना मुकाम हासिल कर सकते हैं। दुनिया  मे इस क्षेत्र मे क्या हो रहा है इसकी जानकारी मुझे पत्रिकाओं और रेड़ियो से मिल पाती थी। टीवी तो बाद मे आया, मेरा जन्म नैनपुर मंडला जिला मध्यप्रदेश मे हुआ। 
खुशी की बात यह थी कि उस आदि्वासी क्षेत्र मे रेल्वे का विकास हो रहा था, मैं शहर मे रहता था इस तरह मुझे तीनो क्षेत्रों की जानकारी थी। मै तीनो आधुनिक तकनीक, आदिवासी परम्परा तथा कस्बाई रहन-सहन से परिचित था। इस तरह मैने तीनो की चित्रकारी देखी तो पाया कि मुझे विधिवत शिक्षा लेना बहुत जरुरी है, एक ही मंडप के नीचे कितने तरह की विधाएं चल रही हैं आर्टिस्ट क्या-क्या काम कर रहे हैं पुरी दुनिया मे। सबसे पहले तो मेरे गुरु थे स्व: अनादि अधिकारी जो नैन पुर मे थे। जे जे स्कुल ऑफ़ आर्ट से उन्होने 1952मे डिप्लोमा कि्या था। मै उनके कलाजीवन आश्रम मे जाकर सीखता था। उनकी छाप मेरे जीवन मे ऐसी पडी कि घृणा-अपमान-स्वार्थ शब्द को डिक्सनरी से हटा देना चाहिए क्योंकि यह मनोभाव फ़िर आपके काम मे भी परिलक्षित होता है।
ललित डॉट कॉम-- आपने इस क्षेत्र मे बहुत काम किया है तथा मै जानता हुँ कि आपने गणतंत्र दिवस की झांकियों में भी अपने कला कौशल का उल्लेखनीय प्रयोग कि्या है कृपया इस विषय पर जानकारी दें?
डी डी सोनी जी ---बहुत बहुत आनंदित हुँ मै आज जो अपने विचारों को व्यक्त कर पा रहा हुँ, पहले हम गणतंत्र दिवस की परेड मे पोस्टर के माध्यम से जानकारी देते थे। ले्किन छोटे होने के कारण संदेश पु्री जनता तक नही पहुंच पाता था, फ़िर हमने इसे प्लाई बोर्ड पर बनाया तब भी ज्यादा लोगों तक नही पहुंच पाता था इसलिए फ़िर हमने चलित झांकियों का निर्माण शुरु किया। मेरे लिए यह एक बड़ा कैनवास था जिसे लाखों लोग प्रत्यक्ष तथा करोड़ों लोग टीवी के माध्यम से देख पाते थे. अगर कोई हमारी झांकी dekh कर उससे प्रेरणा लेता है तो हमारा उद्देश्य हम सफल मानते हैं.
ललित डॉट कॉम-- लोग जब आर्ट एक्जीबिशन में जाते हैं चित्रकला प्रदर्शिन देखने लिए तो वहां आज कल परम्परागत चित्रों के साथ आधुनिक चित्रकला भी प्रदर्शित होती है. कुछ आदि तिरछी रेखाएं रंगों एवं प्रकाश के संयोजन से कैनवास पर बनाई जाती हैं. जिसे देख कर दर्शक सर हिला कर निकल जाता है. उसकी समझ में नहीं आता है. आप परंपरागत चित्रकला और आधुनिक चित्रकला के संबंध में बताये की हम उन्हें किस तरह समझे?
डी डी सोनी जी ---चित्रकार की पेंटिंग जो होती है वह समाज के लिए अलग, वरिष्ठ चित्रकारों के लिए अलग, आलोचक और समालोचक के लिए अलग होती है. इस तरह चित्रकार को भी कई मुकाम से गुजरना पड़ता है. सबकी अलग अलग डिमांड होती है. इसलिए जब हम एक्जीबिशन लगाते हैं तो एक बच्चे से लेकर वरिष्ठ चित्रकार तक की पसंद का ख्याल रखते हैं कि सबको कुछ तो कुछ पसंद आए. चित्रकार अपनी अनुभूतियों को चित्र के माध्यम से प्रदर्शित करता है आवश्यक नहीं है कि वह सभी को पसंद आये. सबकी पसंद अलग-अलग होती है. उसे पूरा करने का प्रयास किया जाता है.
ललित डॉट कॉम--क्या यह विधाएं पिता से पुत्र को परंपरागत रूप से हस्तांतरित होती हैं? क्या वर्त्तमान में भी गुरु शिष्य परंपरा से चित्रकारी और शिल्पकारी का प्रशिक्षण दिया जाता है?
डी डी सोनी जी----कार्य कुशलता पिता से पुत्र को गुरु से शिष्य जो मिलती है लेकिन अगर हम कहें कि खानदान में चली आ रही है तो मैं नहीं मानता क्योंकि यह ईश्वर प्रदत्त होता है. हमारे जितने भी चित्रकार हैं उन्होंने अपने खानदानी काम से हट कर जगह बनाई है. जो किसी खानदान या घराने से जुड़े लोग है वो नयी चीज को देने में असमर्थ रहे.
साक्षात्कार अभी जारी है------अगली किश्त में.

19 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया साक्षात्कार है। आगे की किस्त का इंतजार है।

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  2. बहुत ही बढ़िया साक्षात्कार...अगली कड़ी को पढ़ने की अभी से उत्सुकता जाग उठी है

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  3. बढ़िया साक्षात्कार है। आगे की किस्त का इंतजार है।

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  4. Sakshatkaar bahut accha hai Soniji ke vichaar jan kar accha laga aur jaanane ki utsukta barkarar hai...Dhanywaad.

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  5. "जो कविताओं के साथ होते थे तो मै सोचता था कि इस कविता के साथ जो चित्र बना है वह सही नही है। इससे भी कुछ अच्छा बन सकता है, कभी गणेश जी मुर्ति देखता था तो लगता था कि यह तो ऐसे बनाई जा सकती थी, कहीं कैलेंडर देखता था तो लगता था कि इससे और भी अच्छा किया जा सकता था, मतलब कहीं संतुष्टि नही मिलती थी ..."

    कलाकार की यह असंतुष्टि ही तो कलाकार की उत्तमोत्तम सृजन की प्रेरणा है ...

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  6. किसी भी क्षेत्र में संतुष्टि होने से उसका विकास रूक जाता है .. कला का विकास असंतुष्टि से ही होता है !!

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  7. अच्छा लगा मिल कर..आगे इन्तजार रहेगा.

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  8. इस परिचय के लिए शुक्रिया ललित जी !वाकई अच्छी कृतियाँ है !

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  9. इतने प्रख्यात चित्रकार के बारे में जानकर अच्छा लगा . आगे के भाग का इंतजार है.

    रामराम.

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  10. डॉ.डी.डी. सोनी जी से साक्षात्कार तो बहुत अच्छा रहा,आप का धन्यवाद एक अच्छे चित्र कार से मिलवाने के लिये

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  11. बढ़िया साक्षात्कार है। आगे की किस्त का इंतजार है
    चित्र वाकई uniqe हैं

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  12. बढ़िया साक्षात्कार है....चित्रकार के बारे में जानकर अच्छा लगा...

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  13. Nishchay hi Dr.D.D.Soni ji ek kamaal ke kalakar hain.. unhe naman aur aapka aabhar.
    sakshatkar achchha laga padhna.. agle bhag ka intezar hai.

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