महानदी के किनारे छत्तीसगढ़ के प्रसिद्द तरबूज जिसे स्थानीय भाषा में कलिंदर कहते हैं, उसकी खेती हो रही है, यहाँ से तरबूजों का निर्यात अरब देशों में होता है.........जिससे यहाँ के नदी किनारे के किसानों की रोजी रोटी चल जाती है.........यहाँ के तरबूज बहुत ही मीठे होते है..........जिसके कारण इनकी मांग विदेशों तक है.
महानदी के किनारे तरबूज की खेती
अभी पोस्ट पढ़ा नहीं गया है किन्तु झट नारायण लाल परमार कि कविता याद आ गयी
जवाब देंहटाएं"कलिंदर रे भाई कलिंदर
पाके हवस बड़ सुन्दर
खांव का दू चार
खा न गा हजार "
बाजार में औसतन २५ रूपये प्रति तरबूज बिकने लगा है.
महानदी तो दिख रही है , लेकिन तरबूज कहाँ हैं , भाई ?
जवाब देंहटाएंaah tarbooz...vaah tarbooz...
जवाब देंहटाएंतरबूज रेत के अंदर :)
जवाब देंहटाएंगर्मियों के लिए कुदरत का एक नायब तोहफा
जवाब देंहटाएंमगर यहीं यह तरबूज महंगे मिलते हैं ।
जवाब देंहटाएंभई ऎसे कैसे मान लें कि ये तरबूज मीठे हैं। कभी खिलाएं तो पता चले। वैसे भी हम कानों सुनी पर विश्वास नहीं करते :-)
जवाब देंहटाएंअभी शायद फ़सल आने मे समय लगेगा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
तरबूज तो दिखे नहीं मगर आँख के आगे चित्र खींच गया...
जवाब देंहटाएंअरे ललित भईया ईधर भी भिजवाईये ।
जवाब देंहटाएंललित भाई
जवाब देंहटाएंआपका काम शानदार चल रहा है। अच्छा लगता है आपको लिखते-पढ़ते देखकर। आप हमेशा आगे बढ़े और इसी तरह बिन्दास रहे, यही मेरी शुभकामनाएँ है। हां.. तरबूज के बारे सोच-सोचकर मन ललचा रहा है क्योंकि जिन दिनों अपन जलजीरा (वही समझ गए न) तो तरबूज के साथ भी ले लिया करते थे।
अरे यह जो पानी मै डुबकी लगा रहे है यही तो मिट्ठे तरबुज है,हुआ यु की किसान ने जमीन के व्जाये बीज पानी मै बो दिया होगा:)
जवाब देंहटाएंगर्मियों के लिए कुदरत का एक नायब तोहफा
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