बुधवार, 10 मार्च 2010

वो स्कूल के दिन और ब्लॉग जगत के बड़े गुरुजी

ब बचपन में हमारे दादा जी हमें स्कूल में भरती करवाने गए तो हमने देखा कि वहां एक बुढा खूसट सा धोती कुरता पहने टेबल कुर्सी लगाये बैठा है. दादा जी को देखते ही बोला " आइये महाराज! कैसे आना हुआ?" दादा जी ने कहा कि ललित को स्कूल में भरती करना है. ५ साल का तो हो गया है. 

तो उस महाशय ने मुझे कहा-"सर के ऊपर से हाथ ले जा कर ऐसे कान पकड़ो", हमने काफी खींच तान करके कान पकड ही लिया.... बस फिर उसने हमारा नाम स्कूल के दाखिल-ख़ारिज में चढ़ा दिया और हम स्कूल में भरती हो गए.... 

जब मै नियमित स्कूल जाने लगा तो पता चला की मुझे स्कूल में जिसने भरती किया था उन्हें बड़े गुरूजी कहते हैं. सब उनसे डरते थे और जब कभी क्लास में हल्ला गुल्ला होता था तो एक बेंत की छड़ी लेकर अपने आफिस से निकलते थे तो उनकी आहट से ही पुरे स्कुल में शांति हो जाती थी, उन्हें हेड मास्टर भी कहते थे. 

जब हम कभी खेल के मैदान में उनको खेलते हुए मिल जाते थे तो वहीं पर अपनी छड़ी चलानी शुरू कर देते थे.... जो भाग जाता था उससे दुसरे दिन स्कूल में मिलते थे और जब  वो कापी जांचते थे तो सारी कसर निकाल लेते थे...गलत सलत लिखने वालों की खूब धुनाई करते थे.  

इस तरह के हेड मास्टर टाईप लोग जीवन में हर जगह मिल जाते हैं. कभी पान की दुकान  तो कभी बाजार में, तो कभी रेल गाड़ी में, तो कभी फ्लाइट में. हम इनसे बचने की कोशिश करते हैं लेकिन ये कहीं ना कहीं किसी ना किसी रूप में टकरा ही जाते हैं. 

स्कूल के दिनों की बात है एक दिन पान ठेले में खड़े थे तो एक सज्जन ने हमें पूछा किनके लड़के हो? हमने अपने पिता जी का नाम बताया. तो बस शुरू हो गए--"इतने अच्छे घर के लड़के हो कर पान ठेले में खड़े हो, यह तुम्हे शोभा नहीं देता. कल से यहाँ नहीं दिखना नहीं तो महाराज जी को शिकायत कर दूंगा. " शिकायत का नाम सुनते ही हमारी सिट्टी पिट्टी गोल हो गई. हमने कहा कि आज के बाद यहाँ नहीं आऊंगा. अब कैसे कहता कि जो लड़का पान ठेला चला रहा है वो मेरे साथ पढता है..... बड़ी मुस्किल से इनसे पीछा छुड़ाया.नहीं तो डंडा लेकर ही पीछे पड़ गए थे. 

बाद में पता चला कि वो पांडे जी थे... रिटायर बी.डी.ओ... अब खाली समय में यही करते रहते हैं. छोकरों के पहरुए बने हुए है.

अब जब कालेज में पढने गए तो कालेज के पास पिताजी के एक मित्र रहते थे. एक दिन कालेज में छात्र संघ का चुनाव था...... काफी लड़के कालेज के पास जमा थे. बैंड बजा बज रहा था.. जोर दार प्रचार हो रहा था.... हम भी वहां खड़े थे अपने दोस्तों के साथ और चुनाव के मजे ले रहे थे... 

तभी अचानक वो घर से निकल आये..और उन्होंने भी डंडा भांजना शुरू कर दिया. कहने लगे " क्यों फालतू खड़े हो यहाँ पर, जब कालेज की छुट्टी हो गई है तो यहाँ आने की क्या जरुरत है? जाओ पढो जाकर घर में.. क्यों फालतू वक्त जाया कर रहे हो... अब जब भी कालेज पहुँचते तो सबसे पहले इनके घर में झांक लेते थे कि गुरूजी हैं कि नहीं. क्यों फालतू का रामायण प्रवचन सुना जाये...

अब अभी कुछ दिनों की बात है-हम दिल्ली से फ्लाइट में आ रहे थे. प्लेन उड़ने ही वाला था सभी सवारियां अपने अपने स्थान में बैठ रही थी.. तभी हमने सोचा की अख़बार ही ले लें. एयर होस्टेस से एक टाईम्स आफ इण्डिया अखबार मंगा. 

हमरी बगल में एक सज्जन बैठे थे. उन्होंने कहा कि हमारे पास है अख़बार इसे पढ़ लीजिये... मैंने देखा कि वो हिंदुस्तान टाईम्स था. मैंने कहा कि मुझे तो टाईम्स आफ इण्डिया पढ़ना है तो कहने लगे समाचार सभी में एक जैसे ही हैं. इसे पढ़ कर देखो. अब उन्होंने मुझे जबरदस्ती अख़बार थमा दिया. मैंने उनकी बुजुर्गियत की इज्जत करते हुए अख़बार ले लिया. लेकिन जो स्टोरी मैंने टाईम्स आफ इण्डिया में देखी थी वो इसमें नहीं मिली. तो मैंने एयर होस्टेस से पुन: वही अखबार मंगवा लिया. 

अब वो सज्जन नाहक ही भुन भुनाते रहे. आखिर कर मैंने पूछ ही लिया कि आप कौन हैं? तो वो हमारे प्रदेश के पूर्व सबसे बड़े अधिकारी निकले...

अब ब्लाग जगत में आये. चलो यहाँ तो बड़े गुरूजी से पीछा छूटेगा. शायद यहाँ कोई हेड मास्टर नहीं मिलेगा. बस अपनी पोस्ट लिख कर आनंद लेते रहे. दूसरों की पोस्ट भी पढ़ते रहे. कौन क्या लिख रहा है और किस तरह की सामग्री ब्लाग पर आ रही है. इसे समझते समझते एक साल होने जा रहा है. 

हम रोज अच्छा से अच्छा लिखने की कोशिश करते है. लेकिन जब कभी लिखने का मूड नहीं करता तो ब्लाग अपडेट करने के लिए माईक्रो पोस्ट या एकाध फोटो लगा कर इति श्री कर लेते है. अभी हमारा कंप्यूटर ख़राब था तो सोचा किसी दूसरे के कंप्यूटर से एक दो पोस्ट लगा देते हैं. सक्रियता बनी रहेगी.

यही विचार कर एक महानदी में हो रही तरबूज की खेती की फोटो खींच कर लगा दी. बस फिर क्या था.. ब्लाग जगत के बड़े गुरूजी को पसंद नहीं आया और उन्होंने लानत-मलानत करते हुए एक पोस्ट ही हमारे उपर तान दी. अब खुद को ही सठियाया हुआ बुड्ढा कह रहे हैं... 

गुरुदेव आप अपने को कितना ही सठियाया हुआ बुड्ढा कह लें. लेकिन हम नहीं कहेंगे... क्योंकि हमें तो हेड मास्टरों से मार्ग दर्शन की आदत पड़ गई है. क्योंकि ये हमारी कुंडली में कुंडली मार कर बैठे हैं. आप नहीं कहेंगे तो और कोई हेड मास्टर (बड़े गुरूजी) पैदा हो जायेगा. उसकी सुननी पड़ेगी. इससे अच्छा तो आप ही सुना ले... क्योंकि हमें तो सुननी ही है.. 

कहते हैं ना " सीधे की लुगाई सबकी भौजाई और नंगे की लुगाई सबकी दाई" अब भौजी समझ के चटकही हो जाये तो कौन सा गुनाह है. अब इनको कोई काम धाम तो हैं नहीं दिन भर छड़ी घुमाते हुए कभी इधर कभी उधर सबकी कमियां निकालते रहते हैं....... अब तो यही कहना पड़ेगा कि बचाओ इन बड़े गुरुजियों से..........

23 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी पोस्टों की किस्सा गोई वाला अंदाज मजेदार है।

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  2. छड़ीबाज गुरुओं से तो मैं भी बड़ा परेशान रहता हूँ भाई..आप अकेले नहीं हो. :)

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  3. शुक्र है मेरे गुरु के हाथ में छड़ी नहीं...क्योंकि वो खुद ही छड़ीबाज़ गुरुओं से परेशान हैं...

    गुरु गुरु की बात है...

    जय हिंद...

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  4. रोचक संस्मरण ...शुक्र है कि मेरा अब तक ऐसे गुरुओं से वास्ता नहीं पड़ा है लेकिन ये भी सच है कि...गुरु बिना ज्ञान नहीं

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  5. बहुत रोचक अंदाज में बहुतों के साथ एक सतत घटने वाला संस्मरण

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  6. गुरु चेला दोनो मिले करते सदा धमाल
    गुरु रहे गुरु ही सदा चेला गुरु घन्टाल

    गुरु बडे रहते सदा, रहे खीचते कान
    तव ही मिलता हमे मान और सम्मान

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  7. "क्योंकि हमें तो हेड मास्टरों से मार्ग दर्शन की आदत पड़ गई है. क्योंकि ये हमारी कुंडली में कुंडली मार कर बैठे हैं. आप नहीं कहेंगे तो और कोई हेड मास्टर (बड़े गुरूजी) पैदा हो जायेगा. उसकी सुननी पड़ेगी. इससे अच्छा तो आप ही सुना ले", सही कहा महाराज। ज्ञान बांटने वाले तो बांट के ही रहेंगे चाहे छांट के बांटें या डांट के बांटे। बेहतर है कि अपना नजरिया ही बदल लिया जाये।
    हम भी पहुंच गये जी अपने पिछले जमाने में।

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  8. अब हम क्या कहें? हमारे गुरुजी तो खुद अपने गुरुजी से डरते हैं तो परंपरा तो निभानी पडेगी. वैसे आपकी पोस्ट पढकर हमको आपके गुरुजी का कुछ कुछ अंदाज हो गया है.:)

    रामराम.

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  9. सारी जिन्दगी छड़ी और डंडे से बचने की कोशिश की लेकिन वह हर चौराहे पर हाजिर थी।

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  10. ऐसे गुरुजी जैसे लोग जीवन में नहीं हो तो जीवन नीरस सा हो जाता है। हम महिलाओं को तो हर कोई ही उपदेश देता है तो हमारी तो आदत हो गयी है। बढिया पोस्‍ट थी, आनन्‍द आया।

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  11. अरे ललित भईया आप भी कैसी बात कर रहे हैं ??

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  12. ललित जी, आपसे पूर्ण सहानुभूति है। यहाँ तो यह हाल है कि स्त्री होने के नाते बहुत उपदेश सुनने पड़ते हैं। नन्हा बालक जब पहली बार बोलना शुरू करता है तो सबसे पहले उपदेश ही दे डालता है, कि स्त्री क्या और कैसे खाए, पिए, सुने, गाए, रोए और उसे दूध पिलाए आदि।
    खैर, क्या किया जा सकता है? पुरुषों की दुनिया में जब आएँ हैं तो.....
    घुघूती बासूती

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  13. इस पूरे जीवन में गुरूजी के रहते चैन से जीना और खाना .. सोंचना भी मना है !!

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  14. आप लगे रहिये ललित जी , देखना ये गुरु गुड ही रह जायेंगे और चेले शक्कर हो जायेंगे एक दिन !

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  15. मुझे तो आज भी उन गुरू जी की याद आती है जो मुझे रोज पीटते थे..
    उन्हीं के कारण कुछ लिख पढ़ सका....

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  16. भई कमाल है! एक आप हैं जो कि गुरूओं से परेशान हैं..और इधर हम सोचते है कि हमें ऎसे गुरू क्यों नहीं मिलते जो कि हमारी कमियाँ बताकर हमारा मार्गदर्शन कर सकें.....

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  17. हा हा हा ! ललित जी , छड़ी वाले गुरूजी से तो डॉक्टर भी नहीं बचे ।
    चलो अब तो हम और आप स्टाफ हो गए ।

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  18. ब्लॉग जगत के बड़े गुरूजी ..हाहाहा

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