बुधवार, 31 मार्च 2010

लिव इन रिलेशनशिप: एक चिंतन

लिव इन रिलेशनशिप पर बहस चल रही है, इसमें हम भी अपनी देहाती, गंवई सोच के साथ सम्मिलित हो गये हैं अब यह बहस सार्थक है कि व्यर्थ अभी इस पर फ़ैसला समय करेगा। लेकिन फ़िर भी हम गाल बजाए जा रहे हैं।

इस विषय पर हम शहरों के बारे में तो कुछ नही कह सकते क्योंकि वहां तो पड़ोसी को भी पड़ोसी पहचानता नही है। कौन, कैसे, और किसके साथ रह रहा है,  इससे किसी को कोई मतलब नही है, लेकिन गांव कस्बे में इसका असर जरुर पड़ता है,

लगभग सभी लोग एक दूसरे को जानते हैं। लिव इन रिलेशनशिप संबंधों को एक नया नाम दिया जा रहा है। बिना विवाह के एक साथ पति पत्नी की तरह रहना अर्थात एक बेनामी रिश्ते में बंधना।

बंधन शब्द विवाह संस्था के लिए उपयोग में लाया जाता है तथा यंहा पर भी कहा जाएगा एक बेनामी रिश्ते में बंध गए। लेकिन बंधना जरुर है। 

यह सब कहने-सुनने तक अच्छा लगता है, इस पर जोरदार बहस हो सकती है, इसमें शरीक होकर हम अपनी बुद्धिमता प्रकट कर सकते हैं, अपना ज्ञान बघार सकते हैं, लेकिन जब घर का कोई बच्चा सामाजिक दायरे से बाहर निकल कर बे्नामी रिश्ते रखता है तो क्या उसके परिजन और माँ बाप उसे स्वीकार कर पाएंगे?

कौन माँ -बाप चाहेगा उसकी लड़की या लड़का बिगड़ जाए, जब गांव समाज में इसकी जानकारी होगी तो क्या वे शान और सम्मान से रह पाएंगे? क्या बिरादरी उसे बख्श देगी?

लिव इन रिलेशनशिप से क्या  सहस्त्राब्दियों से बना हुआ सामाजिक ढांचा बदल जाएगा? क्या इसे सामाजिक मा्न्यता मिल पाएगी? बहुत सारे सवाल जेहन मे आते हैं।

लिव इन रिलेशनशिप के मायने क्या हैं?

भारत की जन संख्या का एक बड़ा भाग गांवों मे निवास करता हैं। हमारे संस्कारों में यह बताया गया है कि जन्म से जातक पर तीन ॠण चढे रहते हैं, 1-पितृ ॠण, 2-ॠषि ॠण तथा 3-राष्ट्र ॠण्। जिसे हम पुरुषार्थ चतुष्टय के द्वारा चुकाते हैं। इन पुरुषार्थ चतुष्टय का जीवन में महत्वपुर्ण स्थान है।

पूरा सामाजिक ताना बाना इसके इर्द-गिर्द ही बुना गया है। रिश्तों की पहचाने के लिए प्रत्येक रिश्ते को अलग अलग नाम दिया गया है। पुरुषार्थ चतुष्टय में गृहस्थ आश्रम को महत्वपुर्ण स्थान दिया गया है। गृहस्थ आश्रम ही बाकी के तीनों आश्रमों को चलाता हैं।

अब कहते हैं कि बिना किसी नाम के तथा काम के एक साथ रहा जाए उसे मान्यता दिजिए और मान्यता मिल भी गई तो उससे क्या होगा? जवानी के दिन तो उछल कूद में निकल जाएंगे लेकिन जब बुढापा आएगा तो कौन संभालेगा?

मैने देखा है कि इस तरह की हरकत करने वालों का बुढापा बहुत खराब हो जाता है। अगर परिवार रहे तो नाती पोतों के साथ समय कट जाता है लेकिन नही तो फ़िर पागल खाना ही नजर आता है, वह व्यक्ति सामाजिक न रहकर असामाजिक तत्व हो जाता है, तथा समाज भी स्वीकार नही करता।

आज पश्चिम के देश भी हमारी सामाजिक व्यवस्था से प्रभावित हैं, वहां की औरते भारतीय पति चाहती हैं क्योंकि ये टिकाउ होते हैं। शादी को पवित्र कार्य माना गया है इसे सात जन्मों का साथ कहा गया है। लेकिन पश्चिम की गंदगी को हम सर पर उठाकर घुमने की सोच रहे हैं। जबकि वहां के लोग इससे त्रस्त हो चुके हैं।

टीवी में एक सिरियल आता था जिसमें पति पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका बेवफ़ाई पकड़ने के लिए जासुसों का प्रयोग किया गया था, वे उन्हे कैमरे पर सबुत के साथ पकड़ते थे।

इससे पता चलता है कि पश्चिम मे विवाह जैसे संबंधों के प्रति लोग गंभीर नही हैं, लेकिन जो गंभी्र हैं अगर उनके साथ बेवफ़ाई होती है तो वे अवसाद तथा पागल पन की बिमारी से ग्रसित होकर गंभीर अपराधों को जन्म दे रहे हैं।

विवाह करना सिर्फ़ यौन तुष्टि ही नही हैं। इसे सम्पुर्ण जीवन में जीना पड़ता है अपने परिवार का निर्माण कर उसका पालन पोषण और निर्वहन करना पड़ता है।

अब हमारी प्राचीन समाजिक व्यस्था की बात करें तो वह हमारी जांची परखी तथा देखी भाली ब्यवस्था है। जिसके प्रति हमें कोई संदेह नही है, ऐसा नही है कि कोई एक पुरुष या महिला भारत के सवा सौ करोड़ लोगों के विचारों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं तथा सभी लोग उससे सहमत हैं।

इन रिश्तों से जो समस्याएं खड़ी होगीं उनका समाधान किसी के पास नही है। इन रिश्तों का समर्थन करने वाले आधुनिक और समर्थन न करने वाले पुरातनपंथी कहला रहे हैं।

अगर अपने संस्कारों को साथ जीना पुरातन पंथी है तो यह भी स्वीकार्य हैं, हमें गर्व है हमारी संस्कृति तथा सामाजिक व्यवस्था पर जिसे हमारे पुर्वजों ने कायम किया है।

एक सत्य घट्ना की ओर ले चलता हुँ जो आज से लगभग 10 वर्षों पुर्व घटित हुई थी, हमारे गांव के पास एक शिक्षक परिवार रहता था, उसके परिवार में 6 सदस्य थे, एक लड़का और तीन लड़कियां और स्वयं पति-पत्नी, बस इसी समय की बात है। परिक्षांए चल रही थी, घर की बड़ी लड़की परीक्षा दिलाने गयी थी और उधर से ही आकर उसी गांव में अपने प्रेमी के घर में उसके साथ रहने चली गयी। शिक्षक ने जब यह बात सुनी तो उसने उसी वक्त अपने परिवार के चारों सदस्यों समेत आत्म हत्या कर ली।

एक लोम हर्षक कांड कुछ ही घंटों में घट गया। लेकिन उस समय वह लड़की अपने परिवार के सद्स्यों की मौत पर भी नही आयी। जिसको भी जानकारी मि्ली वह स्तब्ध हो गया। एक साल बाद समाचार मिला की उस लड़की ने भी अपने प्रेमी के घर में फ़ांसी लगाकर आत्म हत्या कर ली। इस तरह के क्षणिक संबंधों के कारण एक परिवार पुरी तरह समाप्त हो गया।

लिव इन रिलेशनशिप का आधार पारस्परिक प्रेम या प्रगाढ संबंध नही है यह तो एक अघोषित अनुबंध जैसा है कि हमें जब तक अच्छा लगे एक दुसरे के साथ रहना है। जब कुछ खटपट हो तो अपना बोरिया बिस्तर समेटो और दुसरा घर देखो।

इस तरह के रिश्ते खतरनाक हो सकते हैं जो यौनिक उच्श्रृंखलता को जन्म देगें। इससे पैदा होने वाले भीषण संकट का सामना करना आसान नही होगा। भले ही इसे कानुनी मान्यता मिल जाए लेकिन समाज मान्यता नही देगा।

यह कोई समाज सुधार आन्दोलन तो नही है जो समाज इसे मान्यता देने के लिए सील मुहर लेकर बैठा है। एक बिगड़ैल परम्परा की शुरुवात अवश्य हो जाएगी जिससे समाज का युवा वर्ग उच्चश्रृंखल हो सकता है।

अब कोई एक दो लोग रह भी लें तो क्या फ़रक पड़ता है। हमारा तो यही देहाती चिंतन है। यही विचार हमारे मन में आए और हमने आपके सामने रख दि्ए और विचार उमड़ेंगे घुमड़ेंगे तो और लिखेंगे।

39 टिप्‍पणियां:

  1. सही गाल बजाये हैं..और मौका लगे तो बजाईयेगा. :)

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  2. .....बेहद प्रभावशाली,सार्थक,अनुकरणीय,दिशासूचक व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!!

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  3. बहुत सही लिखा है आपने । हमारे गाँव में तो एक गोत्र में शादी तक नहीं हो सकती । फिर भला इस तरह के रिश्ते को कौन स्वीकारेगा। निश्चित ही पतन का रास्ता है ये । अब इस पर चलना चाहें यानि कुँए में गिरना ही चाहें तो भला कौन रोक सकता है।

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  4. 'लिव इन रिलेशन' में शादी की सारी समस्याएं हैं, लेकिन फ़ायदा एक भी नहीं...
    हाँ नहीं तो..!

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  5. @ समीर लाल जी

    अवश्य बजाएंगे जी,
    जरुरत पड़ी तो "खड़ी चोट" बैंड़ पार्टी का बैंड भी लाएंगें
    और उसे भी बजाएंगे:)

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  6. @ डॉ दराल जी,

    कुल गोत्र परिवार की पहचान है
    इसी के आधार पर खानदान का पता चलता है।
    यह प्राचीन परिष्कृत वैज्ञानिक व्यवस्था है।
    कहा गया है ना---

    सगोत्री भाई-भाई, बाकी सब असनाई

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  7. हम लोग पश्चिम के अंधानुकरण में लगातार पतन की और बढते चले जा रहे हैं ...
    प्रभावी आलेख

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  8. बहुत ही सार्थक पोस्ट है. लिव इन के मूल मे प्रेम विहीन, दायित्व विहीन मनमौजी साहचर्य है. ये कोई आन्दोलन नही है सामाजिक अपवाद है.

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  9. लिव-इन-रिलेशन विवाह का विकल्प नहीं है, अपितु उस से बचने का तरीका है। इसे सामाजिक मान्यता प्राप्त होने का तो प्रश्न ही नहीं है। महानगरों में निवास करने वाले कुछ गिनती के लोगों ने इस जीवन पद्धति को अपनाना आरंभ किया है। समस्या यही है कि यह विवाह संस्था के विपरीत खड़ी हुई है। इस का मूल उद्देश्य ही पति-पत्नी के बीच के कानूनी दायित्वों और अधिकारों से मुक्त रहना है। लेकिन बच्चों के दायित्व से तो मुक्त नहीं किया जा सकता। उन्हें कहीं न कहीं कानूनी दायित्वों में तो राज्य और समाज को बांधना होगा। समस्या यह है कि इस तरह के संबंधों को किस तरह कानून के दायरे में लाया जाए।

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  10. बहुत अच्छा
    चित्र तो और भी अच्छा लगाया है

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  11. इस तरह के रिश्ते खतरनाक हो सकते हैं जो यौनिक उच्श्रृंखलता को जन्म देगें। इससे पैदा होने वाले भीषण संकट का सामना करना आसान नही होगा। भले ही इसे कानुनी मान्यता मिल जाए लेकिन समाज मान्यता नही देगा।

    सौ टका खरी बात कही है आपने.

    रामराम.

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  12. अत्यन्त सार्थक पोस्ट लिखा है आपने ललित जी!

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  13. बस इतना ही कहना चाह्ते हैं
    कि
    इस तरह के रिश्ते खतरनाक हो सकते हैं जो यौनिक उच्श्रृंखलता को जन्म देगें।

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  14. जो जिंदगी में जिम्मेदारियों से भागना चाहते हैं वो ही इस सम्बन्ध के पक्ष से सहमत होंगे...आपकी बात बिलकुल सही है...जिंदगी के अंतिम पदाव पर आ कर समझ में आएगा कि हाथ कुछ भी नहीं लगा...बहुत सार्थक पोस्ट

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  15. गुजरात उच्च न्यायालय ने मैत्री करार को अवैध ठहराया था .
    यह बड़े लोगों क शगल है जिसे कानूनी जामा पहनने की कोशिश की जा रही है लेकिन इसके पहले कई कानून बदलने पड़ेंगे .
    सुंदर आलेख

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  16. bahut sundar vicharatmak lekh lekin kshama karen samaaj aage chalkar ise saharsh swikaar karega.Western world ke budaiyo ko ham follow karate hai acchaaiyo ko nahi ye galat hai.Live in relationship me kya galat hai? han vivah jaisa aadamber nahi hota isme.

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  17. @ अरविंद जी,
    सबका चिंतन करने का सोचने का नजरिया अलग-अलग होता है।
    जिसने जितना देखा होता है दुनिया को उसके आधार पर अपना
    मन्तव्य देता है। एक परिणाम तक पहुँचता है।
    रही बात समाजिक स्वीकृति की तो अपनी जिम्मेदारियों से कोई भी
    भाग सकता है, समाज एक दो बार अच्छाई बुराई को समझा सकता है लेकिन हमेशा पीछे पड़ा नही रह सकता। फ़िर हमने अपनी देहाती
    गंवई सोच को ही लिखा है।
    सभी की सोच अपनी अलग-अलग होती है।

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  18. आपने तफसील से बातें बता दी -अब लगता है यह मुद्दा खत्म हुआ

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  19. सब लोग बेवकूफों की तरह लिव इन रिलेशन शिप..... के बारे में बात कर रहे हैं..... सब आदर्शवादिता बतिया रहे हैं. जबकि सबको मौका मिलेगा अगर रहने का तो सब लोग लिव इन में रहेंगे. और भारत में इसका अभी कोई कामून्न पास नहीं हुआ है, लेकिन सब लोग बिना नॉलेज के बात कर रहे हैं. फ़ालतू के ढकोसले दिखा रहे हैं लोग यहाँ. आपने लेख बहुत अच्चा लिखा है. लेकिन इस पर बाकी लोगों को नॉलेज गेन कर के ही बात करनी चाहिए. यहाँ एक मुक्ति को छोड़ कर बाकी सब चुतियापा बतिया रहे हैं.

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  20. यह देहाती नहीं बहुत सही चिंतन है आपका भाई जी ! शुभकामनायें !

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  21. ललित भाई,
    आपको मैं नोएडा के पॉश सेक्टरों की बात बताता हूं...यहां ज़्यादातर लोगों ने अपने गैराज बैचलर्स, स्टूडेंट्स को किराए पर दे रखे है...यहां कम्पीटिशन के नाम पर पढ़ाई करने के लिए घरों से दूर रह रहे छात्र या नई नई नौकरी करने वाले बैचलर्स धडल्ले से अपनी गर्ल फ्रैंड्स को बुला कर दिन भर कमरे में बंद रहते हैं...मकान मालिकों को बस महीने के छह-सात हज़ार रुपये टाइम से मिल जाने चाहिए...बाक़ी उनकी भला से कुछ भी होता रहे उनके गैराज में...ये आधुनिकता के इम्पोर्ट की देन है...

    जय हिंद...

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  22. ललित जी जिन शव्दो को मै ढुढ रहा था, वो आप ने अपनी जादू कि कल से बहुत सुंदर ढंग से समझा दिया, काश हम सब इस एक गंवई देहाती जेसा दिमाग रखे, ओर भाई देहाती जी आप को मेरा सलाम

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  23. ललित जी आप ने एक समसामयिक विषय को गंभीरता से उठाया है.जहांतक इस विषय पर मतभेद की बात है आज़ादी और प्रगति की परिभाषाएं हमेशा भिन्नता लिए रहेंगी.लेकिन मानवता की रक्षा का सबाल तो सब के लिए महत्व का होना चाहिए मर्यादाओं और मूल्यों ने समाज को जंगली और वहशी समाज से बाहर निकाला है विवाह जैसी मजबूत संस्था इसकी अमूल्य den है जो हजारों साल की सांस्कृतिक यात्रा का परिणाम है.भोग की लालसा ने जिनके चरित्र की दीवारों को गिरा दिया हैऐसे कुछ लोगों की समस्या का समाधान यह लिव रिलेशन है.

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  24. hum log pachimi savayata ki or tegi se bhag rahen hai jiska parinam bahut hkatanak hone wala hai, lekin avi hamare pas ise rokne ka koi sadhan nahi hai.
    parinam bhugatne ke bad hi yah rukega.
    apna dehati soch hi sabse achha soch hai.

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  25. जिस तरह से आपने सार्थक विश्लेषण किया है, वो देहाती हो या शहरी, सभी के लिए अनुकरणीय है.
    इस सार्थक आलेख के लिए शुभकामनाएं.
    सादर
    मधुरेश

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  26. चिंतन परक आलेख.और सही विश्लेषण.आज हलचल से यहाँ तक आने का मौका मिला.

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  27. इंसान सामाजिक प्राणी है इसलिए समाज कि मर्यादा के लिए बंधन आवश्यक है |निर्बाध रिश्ते दिशाहीन हो जाते हैं ...!
    सार्थक चिंतन ...!
    शुभकामनायें .

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  28. budhape me ekantwas ki samasya k sath ek samasya ye bhi hai ki jiske sath aaj rah rahe hain usse prapt santan kiski jimmevari hogi ....uski jiske sath rah kar vo aaya ya uski jiske sath baad me agar kabhi rahne ka mauka mil jaye....2nd wala sweekar kare n kare...iski kya garantee....1st wala apni jimmewari na samjhe to kya hoga us santan ka? aur agar samjhe bhi to rahega to aakhir kisi ek k pyar se mahroom.
    n jane sarkar ne desh ki shatabdiyon se chali aa rahi sanskriti ko jante hue bhi is kanoon par sweekri kaise de di ?

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  29. बिना विवाह के साथ रहना जैसे बिना नियम-प्रतिबंध का ट्रैफिक - हर जगह एक्सीडेंट ,सुरक्षित कोई नहीं !

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  30. ऐसे किसी भी अनुबंध में पिसती तो नारी ही है । भावनात्मक सुरक्षा जो चाहती है ।

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  31. अब तो और भी नया शिगूफा चल पड़ा है : One day relation

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