गुरुवार, 19 अगस्त 2010

उपन्यास लेखन और केश कर्तन साथ-साथ

श्री रामभरोसा सेन-सब पर नजर
“करे करावे आप है पलटु पलटु शोर” पलटु दास यही कहते थे। सद्कार्यों का श्रेय, प्रेय मार्ग पर चलते हुए ईश्वर को देते थे। कबीर दास जी पेशे से जुलाहा थे। खड्डी पर कपड़ा बुनते थे।

 लोगों को सत्य का मार्ग दिखाते थे। अनपढ होने के बाद भी इतनी गंभीर और गुरुतर साखियाँ कह गए कि पता नहीं इन पर शोध करके कितने लोग पीएचडी लेकर डॉक्टरेट की उपाधि पा गए।

कबीर दास का चिंतन वर्तमान काल में भी प्रासंगिक है। इसी परम्परा में रविदास हुए, सारा जग जानता है कि वे जूते बनाने का काम करते थे। अपने पेशे के साथ-साथ उन्होने जग का मार्ग दर्शन किया, सच्चे कर्म योगी थे। उनके कार्य में कभी पेशा आड़े नहीं आया। ईश्वर ने सदा उन पर अपनी अनुकम्पा बनाए रखी। वे जग प्रसिद्ध हुए।

इसी परम्परा में चलते हुए एक आधुनिक युग के उपन्यासकार से आपको रुबरु करा रहा हूँ, जो पेशे से तो नाई हैं। केश कर्तन कला में माहिर हैं। अपने केश भी स्वयं ही संवारते हैं।

बाकी नाईयों को तो अपनी स्वयं की हजामत दूसरे से करानी पड़ती होगी लेकिन ये अपनी हजामत स्वयं करते हैं, यह भी एक निरंतर अभ्यास और लगन का परिणाम है।

मैं बचपन से अपनी हजामत इनसे ही कराता हूँ, चाहे कहीं भी रहु, देश-परदेश में लेकिन जब बाल बढ जाते हैं तो इनकी याद आती है और सीधा इनके पास ही दौड़ा चला आता हूँ। इनसे हमारा पीढियों का रिश्ता है, परिवार के एक सदस्य की मानिंद सुख-दुख भी आपस में बांटते हैं।

अब आप सोच रहे होगें कि एक साधारण से नाई की चर्चा मैं क्यों कर रहा हूँ। बताता चलुं कि यह शख्स साधारण अवश्य है लेकिन इनके कार्य असाधारण हैं।

ईश्वर में अटूट आस्था रखने वाले अभनपुर निवासी और पढे-लिखे कर्मयोगी राम भरोसा सेन जी की बस स्टैंड में तुलसी हेयर कटिंग सेलून एवं ब्युटी पार्लर नाम से हजामत  की दुकान है, जहां पहले ये अपने पिता जी के साथ काम करते थे अब अपने पुत्र के साथ काम करते हैं।

नगर के गणमान्य लोग इनकी ही सेवा लेते हैं। नम्बर लगा कर अपनी हजामत कराते हैं। ये छोटे-बड़े, जाति-पातिं, अमीर-गरीब इन सब बुराईयों से अलग होकर  निरपेक्ष भाव से सभी की सेवा करना अपना कर्तव्य समझते हैं,पूरानी मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त राम भरोसा सेन लगन से अपना काम करते हैं, ना काहु से दोस्ती, ना काहु से बैर।

सुबह 8 बजे इनकी दुकान खुल जाती है और रात को 8 बजे नियम से बंद होती है। बस यही जिन्दगी है, लोगों की सेवा करते-करते आज 58 वर्ष के हो चुके हैं। इनकी पढने और लिखने में भी रुचि है। शतरंज के अच्छे खिलाड़ी हैं।

मेरी राम भरोसा जी से हमेशा चर्चा होते रहती है, इन्होने 3 उपन्यास लिखे हैं जो सामाजिक सरोकार से संबंधित हैं। समाज का कुरीति और बुराइयों पर इनकी पैनी नजर है, इनके उपन्यासों में आस-पास समाज की झलक दिखाई देती है।

इनका पहला उपन्यास “लाल चुनरिया” है, दूसरा उपन्यास “मुसीबत” और तीसरा उपन्यास “विधवा विवाह” है। यह उपन्यास प्रकाशित नहीं है, इनकी पान्डू लिपियाँ राम भरोसा जी के पास सुरक्षित हैं, इन उपन्यासों को मैने देखा है, गांव में रहकर हजामत कार्य करते हुए, लेखन करना एक अद्भुत कार्य है।

मैं जब भी इनके पास हजामत कराने जाता हूँ तो गर्व होता है कि एक उपन्यासकार से अपने बाल कटा रहा हूँ और दाढी बना रहा हूँ। बचपन से जीवन के झंझावातों से जूझने एवं उनसे लड़ने की छाया स्पष्ट रुप से इनके लेखन में नजर आती है।

जब इन्होने मैट्रिक की परीक्षा पास की तब सरकारी नौकरियों की कमी नहीं थी, मैट्रिक पास को हाथों-हाथ मास्टरी और क्लर्की मिल जाती थी, लेकिन इन्होने नौकर बनने की बजाय मालिक बनना पसंद किया।

अपनी लगन से छोटे से टीन एवं लकड़ी के डब्बे को पक्के हेयर कटिंग सेलून में बदल दिया। इनका कहना है कि उस समय मास्टर और क्लर्कों को इतनी कम तनखा मिलती थी कि परिवार चलाना कठिन हो जाता था, इसलिए मैंने नौकरी करने की बजाय अपना पुस्तैनी धन्धा ही आगे बढाने की सोची और उसमें कामयाब भी हुआ।

इनके मन  में वर्तमान व्यवस्था के प्रति रोष भी है और वही रोष इनके उपन्यासों में झलकता है।

 सृजन के शिल्पी राम भरोसा सेन जी औरों के लिए भी प्रेरणा हो सकते हैं। इनके उपन्यास की पाण्डु लिपियाँ प्रकाशन की बाट जोह रही हैं, कहते हैं कि कोई प्रकाशक उनके उपन्यासों को प्रकाशित करेगा तो वे प्रकाशन के अधिकार उसे दे देगें।

पहले एक दो लोगों ने इनसे उपन्यास की पाण्डु लिपियां मांगी थी, लेकिन प्रकाशनों में चल रही चोरी के समाचार के कारण इन्होने अपने उपन्यास नहीं दिये।

गांव के उपन्यास कारों के उपन्यासों को प्रकाशक नामी लेखकों के नाम से प्रकाशित कर देते हैं, ऐसी घटनाएं अक्सर सुनने में आती हैं। इसलिए राम भरोसा सेन ने सावधानी बरतते हुए अपने उपन्यास किसी को नहीं दिए।

उचित प्रोत्साहन के अभाव में गांव की प्रतिभाएं दम तोड़ देती हैं,वर्तमान में जिसे भाषा का ज्ञान नही है, जिसे मितानीन और मितानी शब्द का अंतर नहीं मालूम  उनकी उपस्थिति साहित्यिक मंचों पर देखने मिलती है।

जिन्हे भाषा शउर नहीं है, जो साहित्य और काव्य के नाम से मंचों पर अश्लीलता का बखान कर रहे हैं और  बोल्ड साहित्यकार की पदवी पाकर साहित्य मंच से अपनी शोभा बढा रहे हैं। या फ़िर किसी विशेष दल, गुट या घटक में सम्मिलित होकर, चाटूकारिता करके स्थान पा लेते हैं।

लेकिन जो असली हकदार होता है वह अपनी खुद्दारी और स्वाभिमान के कारण स्थान पाने और प्रचार-प्रसार पाने से वंचित हो जाता है।

आज  उम्र की ढलान पर हैं लेकिन उनमें वही जोश और जज्बा कायम है जो आज से तीस वर्ष पूर्व हुआ करता था। इन्हे किसी मान और सम्मान की दरकार नहीं है,

भगवान का दिया इनके पास बहुत कुछ है और सुख से जीवन यापन कर रहे हैं, जमा पूंजी नहीं है तो कोई बात नहीं लेकिन इतनी कमाई हो जाती है जिससे जीवन आनंद से बसर हो जाए और कोई काम पैसे को लेकर रुके नहीं। लेकिन ऐसे प्रतिभावान लोगों को समाज के सामने और दुनिया के सामने लाना एक कर्तव्य बन जाता है,

जिनकी पहुंच दिग्गज आलोचकों, प्रकाशकों,लेखकों तक नहीं है। जिससे साहित्य जगत में इनका नाम हो सके। अहर्निश भाव से सृजन करने वाले कर्मशील व्यक्तित्व राम भरोसा सेन को मेरा नमन है। अगर आप इनसे सम्पर्क करना चाहते हैं तो इनका मोबाईल नम्बर है---09755276431

36 टिप्‍पणियां:

  1. राम भरोसा जी से मिलवाने का बहुत बहुत आभार. अभी कुछ समय पहले ही दिल्ली में चाय की दुकान चलाते उपन्यासकार के बारे में भी पढ़ा था जिन्होंने खुद ही अपनी किताबें प्रकाशित की हैं.

    कितनी ही ऐसी ही प्रतिभायें हैं जिनका पता ही नहीं चल पाता. बहुत आभार आपका.

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  2. बढिया लगा राम भरोसे जी से मिलकर

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  3. rambharose jee do do achchha kaam kar rahe hain. unka uddeshya samaaj ki kurupata ko dikhakar use samaapt karna bhi hai.

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  4. राम भरोसा जी से मिलवाने का बहुत बहुत आभार

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  5. बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
    ढेर सारी शुभकामनायें.

    संजय कुमार
    हरियाणा

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  6. ... अरे सेन जी को बधाई व शुभकामनाएं !!!

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  7. सुन्दर पोस्ट, छत्तीसगढ मीडिया क्लब में आपका स्वागत है.

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  8. ललित भाई
    आपके साथ सबसे अच्छी बात यह है कि आप पीडि़त-वंचित और उपेक्षित लोगों पर निगाह डाल ही लेते हो.
    रामभरोसे ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि कोई उस पर भी लिखेगा
    वेरी गुड़

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  9. एक अच्छी शख्सियत से परिचय कराने के लिए धन्यवाद। इन के उपन्यासों के प्रकाशन की व्यवस्था करवाइए। न हो सके तो नैट पर उस के अंश डालना आरंभ करवाएँ।

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  10. कुछ समय पहले ही दिल्ली में चाय की दुकान चलाने वाले उपन्यासकार को देखा था..अब रामभरोसे जी के बारे में जाना..हमारे यहाँ प्रतिभाओं की कमी नहीं है...
    दिनेशराय जी की बात से पूर्णतया सहमत

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  11. ऐसे लोगों को हर हल में सामाजिक प्रोत्साहन देने की जरूरत है ,आपने बहुत अच्छा किया इनके बारे में लिखकर ..बढिया लगा राम भरोसे जी से मिलकर,राम भरोसे जी से मैंने उनके फोन पर बात करके भी उनकी हौसला को यथा संभव बढ़ाने का प्रयास कीया है ..आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ...

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  12. राम भरोसे जी जैसे उपन्यासकार से परिचय कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!

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  13. रामभरोसा सेन अपने जागरूक युवा मंडल का पदाधिकारी भी रह चुका है .जानदार प्रस्तुति के लिए साधुवाद

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  14. धन्य हैं राम भरोसा जी जो अपने पेशे को बरकरार रखते हुए साहित्य सृजन भी कर रहे हैं!

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  15. कला और लगन को किसी भी सीमा में नहीं बंधा जा सकता आपकी पोस्ट के राम भरोसे जी इसका सशक्त उधाहरण हैं.और न जाने कितना टेलेंट कहाँ कहाँ हैं जो सामने नहीं आ पाता .

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  16. राम भरोसे जी की कर्मशीलता और साहित्य के प्रति उनकी लगन प्रेरणा दायक है .... ऐसे कर्मठ व्यक्तित्व से परिचय करवाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !

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  17. ek itne bhale jaat paant se duur,karm me aastha rakhne wale log bahut kam hi milte hai. bahut hi preranadayak rahi aapki yah post aur aise pratibha ke dhani vyaktitv se parichay karane ke liye aapka bhi yogdan mahtvpurn hai.
    poonam

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  18. धन्य हैं रामभरोसे जी ..... जो कर्म के साथ जो साहित्य लेखन में भी रूचि रखते हैं .... बढ़िया परिचय कराया ललित जी ...

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  19. राम भरोसे जैसे लोग जो की प्रतिभा के धनि होते हुए भी सामने नहीं आ पाते हैं, ऐसे लोगो को ब्लॉग जगत के द्वारा रु-बरु करने का प्रयास अच्छा है...... बहुत खूब!

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  20. ऐसे कर्मठ व्यक्तित्व से परिचय करवाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद

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  21. राम भरोसा सेन जी की साधना को नमन
    इसी जज्बे को शायद जीजिविषा कहते हैं ....

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  22. बहुत सुंदर लगा राम भरोसे से मिलना.धन्यवाद

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  23. आप भी न ढूँढ ढूँढ कर विशेष लोगों से परिचय करते हैं ...बहुत अच्छा लगा रामभरोसे जी के बारे में पढ़ कर ...

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  24. सुन के अचम्भा सा होता है कि सेन जी जैसे लेखक गुमनामी के अँधेरे में खोये हैं.. दुखद है.. हमें अपने मोतियों की क़द्र नहीं..

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  25. प्रतिभा किन्‍हीं परिस्थितियों का मुंहताज तो नहीं होती .. पर उसके सामने न आने से समाज का अपना नुकसान अवश्‍य हो जाता है !!

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  26. जहाँ चाह वहाँ रहा ................रामभरोसे जी जैसे कर्मठ व्यक्तित्व से परिचय करवाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !

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  27. वाह...प्रेरणाप्रद..अनुकरणीय !!!!

    इनका एक ब्लॉग बनवा दें जिसमे ये अपने उपन्यास को प्रकाशित कर सकें..

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  28. ganvo me chhupi pratibha ko jag ke ujale me lane ke liye bahut bahut badhai.....

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  29. ऐसे कर्मठ व्यक्तित्व से परिचय करवाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद

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  30. ऐसे कर्मठ व्यक्तित्व से परिचय करवाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !

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  31. ऐसे कर्मठ व्यक्तित्व से परिचय करवाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !

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  32. पांच वर्ष पुरानी पोस्ट पढ़कर भी अच्छा लगा . अब तक इनका किसी प्रकाशन से संपर्क हुआ या नहीं !

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