राजकुमार सोनी संचालन करते हुए |
विगत दिनों साधना न्युज चैनल के सौजन्य से कारगिल विजय दिवस के अवसर पर कवि सम्मेलन रखा गया था। जिसमें देश के नामी-गिरामी कवियों ने कविता पाठ किया। शहीद स्मारक रायपुर में आयोजित इस कवि सम्मेलन का लाभ उठाने के लिए मुझे एक बार फ़िर आना पड़ा। लगातार बरसात की झड़ी लगी हुई थी। बरसात रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। जब राजकुमार सोनी ने फ़ोन किया तो पता चला कि रायपुर में बारिश नहीं हो रही है। लेकिन मेरे यहां पर बारिश हो रही थी। जाने का मन नहीं था लेकिन मित्रों के आग्रह पर मैं पहुंच ही गया। जैसे ही पचपेड़ी नाका पार किया,यहां भी बरसात प्रारंभ हो गयी।
कुलदीप जुनेजा और अशोक बजाज |
राजकुमार सोनी भीगते हुए मुझे कालीबाड़ी लेने पहुंचे,उस समय 8बज रहे थे। कवि सम्मेलन साढे 9बजे प्रारंभ होना था। सम्मेलन स्थल पर भाई रमेश शर्मा जी भी मिल गए। बात चीत होते रही। तभी अशोक बजाज भाई साहब एवं रायपुर के विधायक कुलदीप जुनेजा जी भी उपस्थित हो गये। अशोक भाई ने आवाज देकर मुझे बुला लिया और कहा कि आप भी कवि सम्मेलन सुनने का शौक रखते है:)मैने कहा कि बस ऐसे ही पहुंच गए। कुलदीप जुनेजा जी से भी चर्चा हूई,कभी इनके विषय में विस्तार से लिखुंगा। इनकी कहानी भी बहुत रोचक है। अलग ही तरह के विधायक हैं। हमेशा जनता के बीच में ही रहते हैं। सदा जनसाधारण को उपलब्ध रहते हैं।
मंचासीन कविगण |
रायपुर नगर की मेयर श्रीमति किरण नायक भी पहुंच चुकी थी। सांसद नंदकुमार साय,हरिभूमि के प्रबंध। संपादक हिमांशु द्विवेदी, आईबीएन 7 के आशुतोष, एवं एन के सिंग भी उपस्थित हो चुके थे।हमारे 36गढ के कवि पद्मश्री सुरेन्द्र दुबे जी पहले ही पधार चुके थे। मंची्य औपचारिकताओं के बाद कवि सम्मेलन प्रारंभ हुआ। बरसात होने के कारण सभागार में श्रोताओं की उपस्थिति कम ही थी। फ़िर भी कवि सम्मेलन तो करना ही था। पद्मश्री सुरेन्द्र दुबे जी ने एक कविता बस्तर के विषय में पढी। इस कविता में कवि ने बस्तर के दर्द को उड़ेलकर रख दिया। यह कविता आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हुँ।
पद्मश्री सुरेन्द्र दुबे जी कविता
मैं खामोश बस्तर हूँ
आप क्या जाने सी आर पी एफ़ के जवानों की
माताएं और पत्नियां कैसे दिन बिताती हैं।
जब तक बस्तर से कुशलता का संदेश पहुंच जाता है,
मै बस्तर पर बात करना चाहता हूँ साहब।
केन्द्र सरकार कहती है कि हम नक्सलवाद
के खिलाफ़ ऐसी बहादुरी दिखा रहे हैं।
जिन रास्तों में नक्सली ट्रेन उड़ाते हैं
उन रास्तों में हम ट्रेन ही नहीं चला रहे है।
भाई साहब तब बस्तर पर बात करना चाहता हूँ।
मैं एक बात पूछना चाहता हूँ,
जब बस्तर के जलने की बात दिल्ली तक जाती है
तो वहां पहुंचते पहुंचते ठन्डी क्यों हो जाती है,
तब मैं बस्तर पर बात करना चाहता हूँ।
मैं खामोश बस्तर हूँ,लेकिन आज बोल रहा हूँ।
अपना एक-एक जख्म खोल रहा हूँ।
मैं उड़ीसा,आंध्र,महाराष्ट्र की सीमा से टकराता हूँ।
दरिन्दे सीमा पार करके मेरी छाती में आते हैं।
लेकिन महुआ नहीं लहू पीकर जाते हैं।
मैं अपनी खूबसूरत वादियों को टटोल रहा हूँ
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब
लेकिन आज बोल रहा हूँ।
गुंडाधूर को आजादी के लिए मैने ही जन्म दिया था।
इंद्रावती का पानी तो भगवान राम ने पीया था।
भोले आदिवासी तो भाला और धनुष बाण चलाना जानते थे।
विदेशी हथियार तो उनकी समझ में भी नहीं आते थे।
ये विकास की कैसी रेखा खींची गयी,
मेरी छाती पे लैंड माईन्स बीछ गयी।
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब बोल रहा हूँ
मेरी संताने एक कपड़े से तन ढकती थी।
बस्तर दशहरा में रावण नहीं मरता है।
मुझे तो पता ही नहीं था
रावण मेरे चप्पे चप्पे में पलता है।
भाई साहब अब तो मेरी संताने भी
मुखौटे लगाने लगी हैं।
लेकिन ये नहीं जानती हैं कि
बहेलियों ने जाल फ़ेंका है।
मैने कल मां दंतेश्वरी को भी
रोते हुए देखा है।
मैं लाशों के टुकड़ों को जोड़ रहा हूँ
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब
लेकिन आज बोल रहा हूँ।
नक्सलवाद मेरी आत्मा का एक छाला था
फ़िर धीरे-धीर नासूर हुआ।
और इतना बढा-इतना बढा कि
चित्रकूट कराह रहा है,कुटुमसर चुप है
बारसूर में अंधेरा घुप्प है,क्योंकि हर पेड़ के पीछे एक बंदुक है।
और बंदुक नहीं है तो उन्होने कोई रक्खी है।
अरे उन्होने तो अंगुलियों को भी
पिस्तौल की शक्ल में मोड़ रखी है।
सन 1703 में मैथिल पंडित भगवान मिश्र ने
जिस दंतेश्वरी का यशगान लिखा।
उसका शब्द शब्द मौन है।
अरे कांगेरघाटी,दंतेवाड़ा,बीजापूर,ओरछा,सुकुमा में
छुपे हुए लोग कौन हैं?
मेरी संताने क्यों उनके झांसे में आती हैं।
ये इतनी बात इनकी समझ में क्युं नहीं आती है।
सड़क और बिजली काट देने से तरक्की कभी गांव में नहीं आती है।
मैं अपने पुत्रों की आंखे खोल रहा हूँ
मैं खामोश बस्तर हूं भाई साहब लेकिन आज बोल रहा हूँ।
6अप्रेल को 76जवान दंतेवाड़ा में शहीद होते हैं,
8मई को 8लोग शहादत से नाता जोड़ते हैं।
23जून को 29जवान शहीद होते हैं,
27जून को 21जवान शहीद होते हैं।
मैं शहीदों की माताओं के आगे हाथ जोड़ रहा हूँ
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब लेकिन बोल रहा हूँ।
...behatreen ....jabardast .... dhamaal post hai !!!
जवाब देंहटाएंबस्तर की वेदना --अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंकवि सम्मलेन में श्रोता न हों तो कवियों के लिए हतोत्साहित करने वाली स्थिति होती है ।
फिर भी लाइफ हैज टू गो ओन ।
बेहतरीन प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआखिर बस्तर कब तक खामोश रहेगा? उसे अपनी खामोशी तोड़नी ही होगी।
जवाब देंहटाएंbahut acchi prastuti ke liye badhai.
जवाब देंहटाएंमार्मिक !
जवाब देंहटाएंBEHTREEN PARASTUTI LALIT JI.....
जवाब देंहटाएंJWAAB NAHI AAPKA....
behtareen prastuti..
जवाब देंहटाएं(net kee kharabi ki vajah se kuchh din anupasthiti ke liye mafi chahungi.)
अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक लगी कविता धन्यवाद
जवाब देंहटाएंSurendra dube ji ki ye kavita un logo ke upper chanta hai jo use hansaudhe kavi ke naam se majak udhate hai ..
जवाब देंहटाएंएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं!