दोपहर को भोजन कर रहा था तभी जोर की गड़गड़ाहट की आवाज आई, जैसे आसमान में कई विमान एक साथ उड़ रहे हैं। मैं अधूरा भोजन छोड़कर घर से बाहर की ओर भागा।
सामने एक फ़ाईटर प्लेन गोता खाकर जमीन से उड़ने के लिए फ़ुल थ्रस्ट लेकर उपर की ओर उठ रहा था। मैं खड़े होकर देखने लगा कि यह प्लेन कितने सेकंड में धरती के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलता है। बूम्मssssss करता हूआ प्लेन बादलों से ओझल हो जाता है।
सामने एक फ़ाईटर प्लेन गोता खाकर जमीन से उड़ने के लिए फ़ुल थ्रस्ट लेकर उपर की ओर उठ रहा था। मैं खड़े होकर देखने लगा कि यह प्लेन कितने सेकंड में धरती के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलता है। बूम्मssssss करता हूआ प्लेन बादलों से ओझल हो जाता है।
तभी घरघराहट की आवाज आती है, पीछे मूड़ कर आसमान की तरफ़ देखता हूँ तो बहुत सारे एम. आई. हेलिकाप्टरों का बेड़ा दक्षिण की ओर जा रहा है। नीचे उड़ान भरने के कारण उसमें बैठे हुए हथियारबंद सैनिक दिखाई दे रहे हैं।
नीचे खड़ा मैं उनकी ओर देख रहा था, बुम्म्म्मम्मssssss, बुँउऊऊऊऊँssss की आवाज करता हूआ मिग फ़ाईटर फ़िर लौटता है। एक कलाबाजी खाते हुए सहसा सड़क से लगभग 15 फ़ुट की उंचाई पर समानांतर उड़ता है उसमें बैठा हुआ स्क्वाईड्रन लीडर मुझे स्पष्ट दिखाई देता है, मैं पायलट और उसे विश करता हूँ।
तभी मेरी निगाह सामने सड़क पर पड़ती है तो फ़ौज की पूरी कानबाई दिखाई देती है दक्षिण की ओर जाती हुई। उसमें बैठे हथियार बंद सैनिक सब तरफ़ जागरुकता से पैनी निगाहों से देख रहे थे, जैसे वे आस-पास की सभी चीजों का एक्सरे कर रहे हों।
आगे-आगे जिप्सी में एल. एम. जी. लगाए ब्लेक केट और उनके साथ में खड़े सूबेदार मेजर एवं अन्य एन सी ओ, जेसीओ को पहचानने की कोशिश करता हूँ। लेकिन सारे फ़ौजी एक से ही दिखाई देते हैं।
अब आसमान में लगातार बुम्म्म्मम्मssss, बुँउऊऊऊऊँssssssss की समवेत आवाजें आ रही हैं, उपर देखता हूँ कि बगुलों के झुंड की तरह एक फ़ाईटर प्लेन का पूरा का पूरा स्क्वाईड्रन ही चला आ रहा है। जैसी किसी जगह कारपेट बमिंग की सोच कर आए हों।
इस बेड़े में कुछ एल. सी. ए., कुछ मिग, कुछ जगुआर और कुछ सी हैरियर जैसे प्रकाश की ध्वनि से चलने वाले विमान भी हैं। मैं खड़ा-खड़ा सोचता हूँ कि अभी कौन सा युद्ध प्रारंभ हो गया?
जिसकी सूचना मुझ तक नहीं पहुंची। अरे, अभी तो रिटायर हुआ हूँ,पर रिजर्व में हूँ। सूचना तो पहुचनी चाहिए थी।
तभी आसमान में एक मिग गोता लगाता है और बुम्म्म्मम्मsssss, बुँउऊऊऊऊँsssss धड़ाम-भड़ाम की भीषण आवाज आती है। वह पैट्रोल पंप पर गिर जाता है उसके टुकड़े हो जाते हैं।
मैं मौके की गंभीरता को समझता हूँ और सीधा घर के अंदर भागता हूँ, आवाज देता हूँ बेटी-बेटी, पत्नी और बेटा मेरे सामने रहता है, मैं उनसे जल्दी से पूछता हूँ कि बेटियाँ कहाँ है?वह वैसे ही बैठी रहती है, कोई हलचल जैसे कुछ हुआ ही नही है।
मैं कहता हूँ “उठो जल्दी-चलो। मम्मी कहाँ है? तुम तुरंत इस घर को छोड़ दो”। वह पूछती है “क्या आफ़त आ गयी?” मेरे पास जवाब देने का समय नहीं रहता है।
“तुम बच्चों को लेकर रेल पटरियों के उस पार पहुंचो। क्योंकि रेल पटरियों के पार आग नहीं जा सकती। वहां घास नहीं है,.........देर मत करो......... कभी भी विस्फ़ोट हो सकता है,....... प्लेन का टैंक फ़ट सकता है,..... ..सब कुछ जला सकता है, ....दौड़ो, .......दौड़ो .....अभी,....सोचो मत........,हरी अप.........., कैरी ऑन……॥ तब तक मैं मम्मी-पापा को देख कर आता हूँ”.
मैं उन्हे आदेश देकर मम्मी-पापा की तरफ़ दौड़ लगाता हूँ। जैसे एक घर पार करता हूँ विस्फ़ोट हो जाता है। एक आग का बादल सीधा आसमान में, मेरे सामने लकड़ियों की एक दीवाल होती है उसमें उड़कर कुछ छर्रे जैसे मुझे आकर लगते हैं।
एक हाथ जख्मी हो जाता है कुछ छर्रे उल्टे पैर पर भी लगते हैं, लेकिन उन्हे रुककर देखने का समय नहीं है, “पापा जीSSSS-पापा जीSSSS, मम्मीSSSS-मम्मीSSSS आप लोग कहां हो, हे भगवान कहाँ है पापा जी?”
मैं आग की दीवार में घुस जाता हूँ, सामने पापा जी खड़े हैं कुछ वैसे ही जख्म उनके सीने एवं पेट पर दिखाई देते हैं। मैं उन्हे खींच कर बाहर निकालता हूँ और उनका हाथ पकड़ कर खींचते हुए बाहर लाता हूँ।
सामने गेट पर मम्मी दिखाई देती है, मैं कहता हूँ भागो, रेल पटरियों के उस पार। वो सामने बच्चों को लेकर रेल पटरियों के पास पहुंचती हुई दिखाई देती है फ़िर बस एक आवाज जोर से निकलती है मुंह से दौड़ोSSSSSSS………सभी दौड़ पड़ते हैं।
सहसा एक और विस्फ़ोट होता है, शायद पैट्रोल टैंक फ़ट गया है, मैं और पापा-गिर पड़ते हैं।
वो मम्मी के साथ बच्चों को लेकर रेल पटरियों के पार पहुंच जाती है। एक संतोष की सांस के साथ मेरी आँखे बंद जाती है…………
बस दो मिनट में ही युद्ध घट गया एक फ़ौजी के साथ……...! दोनों मोर्चों पर लड़ा था मौत से.....।
वो मम्मी के साथ बच्चों को लेकर रेल पटरियों के पार पहुंच जाती है। एक संतोष की सांस के साथ मेरी आँखे बंद जाती है…………
बस दो मिनट में ही युद्ध घट गया एक फ़ौजी के साथ……...! दोनों मोर्चों पर लड़ा था मौत से.....।
अच्छी अभिव्यक्ति ,हर तरफ आज मौत से ही लड़ना परता है सबको चाहे वह सच्चा सिपाही हो या नागरिक ...
जवाब देंहटाएंललित भाई, ये कौन से युद्ध का आंखों देखा हाल है...रौंगटे खड़े करने वाला है...
जवाब देंहटाएंऔर जहां तक करगिल विजय दिवस का सवाल है...न तो अब लगते हैं शहीदों की चिताओं पर हर बरस मेले और न ही वतन पर मर मिटने वालों के बाकी निशां को कोई याद करता है...हां तब ज़रूर पूरा देश जवानों की आरती उतारने लगता है जब सरहद पार या सरहद के भीतर से ही कोई खतरा सिर पर आकर खड़ा हो जाता है...
जय हिंद...
हमारे दो मिनट के युद्ध को ये जवान तमाम उम्र लड़ते हैं ...हर पल ...
जवाब देंहटाएंकुछ और ना कर सकें ....नमन तो कर ही लें ...!
खुशदीप जी की टिप्पणी मेरी भी मानी जाये।
जवाब देंहटाएंek yuddh yah bhi toh hai ..kaash yuddh kewal praan bachaane ke liye hi hote !!
जवाब देंहटाएंलोगों को आखिर अमन-चैन,शान्ति, भाई-चारा क्यों पसंद नहीं हैं?
जवाब देंहटाएंक्यों होते हैं ये युद्ध?
किन्हें शान्ति मिलती है युद्ध की विभीषिका से?
बेहतरीन ! रोंगटे खड़े हो गए !
जवाब देंहटाएंbehatrin prastuti...padhate samay lagaa jaise sachmuch yuddh kaa najaaraa dekh raha hun...
जवाब देंहटाएं... shaandaar post !!!
जवाब देंहटाएंउफ़ ..ये युद्ध होते ही क्यों हैं ..
जवाब देंहटाएंआपसे बात करने के बाद ही कुछ कमेन्ट करुगा ऐसा सोचा था ...........और ठीक ही सोचा था ! वैसे आपने बहुत बढ़िया ओर सजीव चित्रण किया है एक फौजी की दोहरी लड़ाई का !
जवाब देंहटाएंअसली लड़ाई तो सैनिक के परिवार वाले ही लड़ते है | खास कर तब जब वो शहीद हो जाता है|
जवाब देंहटाएंअसली लड़ाई तो सैनिक के परिवार वाले ही लड़ते है | खास कर तब जब वो शहीद हो जाता है|
जवाब देंहटाएं@ खुशदीप भाई,
जवाब देंहटाएंयह युद्ध मेरे दिमाग में चल रहा था।
एक फ़ौजी रिटायर होने के बाद भी लड़ाई दो मोर्चों पर लड़ता है,
और युद्ध के मैदान में रहता है तो भी दो मोर्चों पर लड़ता है ।
kargil ke shahido ko pranaam ..
जवाब देंहटाएं