बात 21 वर्ष पुरानी है, जब हम स्थानीय तौर पर पत्रकारिता करते थे। उस समय कुछ अखबार ट्रेडल मशीन पर छपते थे, खटर-पटर-खट की आवाज निकलती थी और एक पेज प्रिंट होता था, फ़ोटो छापने के लिए ब्लाक बनाना पड़ता था। एक एक अक्षर सेट करके प्लेट बनाई जाती थी।
कुछ बड़े अखबारों में आफसेट मशीन आ गयी थी। लेकिन अधिकतर छोटे अखबार ट्रेडल से ही छपते थे। आज उस जमाने की याद अचानक आ ही गयी, जब भाई अशोक बजाज ने बताया कि मेरी द्वारा लिखी हुई आदिवासी क्षेत्र की एक स्टोरी उनके पास सुरक्षित है।
उन्होने तुरंत मुझे उसकी एक प्रति स्केन करके भेजी। पेपर कटिंग को देखते ही वह इलाका और उससे जुड़ी सारी बातें एक एक करके याद आते गयी। अब इस इलाके में नक्सलियों ने अपनी पैठ जमा ली है।
कुछ बड़े अखबारों में आफसेट मशीन आ गयी थी। लेकिन अधिकतर छोटे अखबार ट्रेडल से ही छपते थे। आज उस जमाने की याद अचानक आ ही गयी, जब भाई अशोक बजाज ने बताया कि मेरी द्वारा लिखी हुई आदिवासी क्षेत्र की एक स्टोरी उनके पास सुरक्षित है।
उन्होने तुरंत मुझे उसकी एक प्रति स्केन करके भेजी। पेपर कटिंग को देखते ही वह इलाका और उससे जुड़ी सारी बातें एक एक करके याद आते गयी। अब इस इलाके में नक्सलियों ने अपनी पैठ जमा ली है।
हम पत्रकारों का एक दल देवभोग मैनपुर के जंगली इलाके में हो रहे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को उजागर करने के लिए स्टोरी करने गया था।
बड़ा ही रोमांचक दौरा था। उस अशोक भाई युगधर्म के संवाददाता थे। हमारे साथ श्रीकांत दामले(अमृत संदेश) दीनबंधु मिश्रा(नव भास्कर) पूर्णानंद सोनी(नवभारत) से थे। हमारे टीम लीडर सीनियर पत्रकार अशोक भाई थे।
उस समय सेंडमुड़ा में अकेल्जेंडर (एक कीमती पत्थर जो सिर्फ़ रुस एवं छत्तीसगढ (तत्कालीन मध्य प्रदेश) में पाया जाता है) तस्करों से पकड़ में आया था। पहली बार खुलासा हुआ था कि इस इलाके में अलेक्जेंडर और हीरे जैसे की्मती पत्थरों की बहुतायत है।
रायपुर के मधुबन होटल में तश्कर पकड़े गए थे और उनके पास से कीमती पत्थर बरामद हुए थे। इस अफ़रा-तफ़री को भी हम अपनी आंखों से देखना चाहते थे। इसलिए चल पड़े थे दौरे पर,
वहां से आकर मैने एक रिपोर्ट लिखी थी जो कि 20जून 1989 को सांध्य दैनिक प्रखर समाचार में प्रकाशित की गयी थी। पेज पर क्लिक करके पढ़ें, इससे आपको उस समय के आदिवासी इलाके की दुश्वारियों के विषय में पता चलेगा।
बड़ा ही रोमांचक दौरा था। उस अशोक भाई युगधर्म के संवाददाता थे। हमारे साथ श्रीकांत दामले(अमृत संदेश) दीनबंधु मिश्रा(नव भास्कर) पूर्णानंद सोनी(नवभारत) से थे। हमारे टीम लीडर सीनियर पत्रकार अशोक भाई थे।
उस समय सेंडमुड़ा में अकेल्जेंडर (एक कीमती पत्थर जो सिर्फ़ रुस एवं छत्तीसगढ (तत्कालीन मध्य प्रदेश) में पाया जाता है) तस्करों से पकड़ में आया था। पहली बार खुलासा हुआ था कि इस इलाके में अलेक्जेंडर और हीरे जैसे की्मती पत्थरों की बहुतायत है।
रायपुर के मधुबन होटल में तश्कर पकड़े गए थे और उनके पास से कीमती पत्थर बरामद हुए थे। इस अफ़रा-तफ़री को भी हम अपनी आंखों से देखना चाहते थे। इसलिए चल पड़े थे दौरे पर,
वहां से आकर मैने एक रिपोर्ट लिखी थी जो कि 20जून 1989 को सांध्य दैनिक प्रखर समाचार में प्रकाशित की गयी थी। पेज पर क्लिक करके पढ़ें, इससे आपको उस समय के आदिवासी इलाके की दुश्वारियों के विषय में पता चलेगा।
वे भी वहीं रात्रि विश्राम कर रहे थे। हमने उनसे गरियाबंद भिजवाने की बात कही थी, उस समय उनके पास MP 0786 नम्बर की जीप थी। उन्होने कहा कि सुबह ड्रायवर आप लोगों को छोड़ आएगा।
जब हम सुबह उठे तो चौकिदार ने बताया कि साहब रात 2 बजे उठकर ही चलते बने हैं। उस इलाके में एक ग्राम पंचायत गिरसुल का जि्क्र भी हमने किया है,उसका हाल भी लिखा है।
वहां के सरपंच चरणदास मांझी 1998 में विधायक भी बने। फ़िर उनके कार्यकाल के अंत समय में उनका देहावसान भी हो गया। अशोक भाई के द्वारा न्युज कटिंग भेजते ही सबकु्छ चलचित्र सा आँखों के सामने घुम गया।
(समाचार पढने के लिए चित्र पर क्लिक करें)
हमने भी ऐसा ही छापाखाना लगाया था!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपके इस अख़बार की कटिंग देखकर तो हमें सीकर से निकलने वाले दैनिक ध्युतिकरण व साप्ताहिक शेखावाटी बाजार पत्रिका की याद दिला दी वे भी ऐसी मशीन पर छपा करते थे और हम किसी भी बहाने अपना नाम छपवाने के लिए उनके दफ्तर जाते रहतेथे
जवाब देंहटाएं@Ratan Singh Shekhawat
जवाब देंहटाएंहां भाई,सस्ते में छपाई यहीं होती थी।
उस समय आफ़सेट प्रेस मशीन बहुत मंहगी होती थी।
...बेहतरीन यादें !!!!
जवाब देंहटाएंआपकी याददाश्त की तो दाद देनी होगी!!
जवाब देंहटाएंपुरानी यादों को ताजा करने का मजा ही अलग है ।
जवाब देंहटाएंपत्रकारिता के दौरान आप विभिन्न परिस्थितियों से गुजरें होंगे ... कई संकटों का सामना किया होगा ... इस पोस्ट की तरह अपने जीवन के तजुर्बे हमें सुनाते रहिये ...
जवाब देंहटाएंक्या बात है आपने अतीत का बेहतरीन चित्रण किया है .वैसे भी अतीत को कभी भूलना नही चाहिए .मेरे पास १९६८ की कतरने भी मौजूद है .
जवाब देंहटाएंपुरानी बाते हमेशा जीवन में नवीनता भर देती हैं इसलिए अपने अतीत को हमेशा स्मरण करने वाला व्यक्ति सफलता प्राप्त करता है।
जवाब देंहटाएं"उस समय कुछ अखबार ट्रेडल मशीन पर छपते थे, खटर-पटर-खट की आवाज निकलती थी और एक पेज प्रिंट होता था"
जवाब देंहटाएंवाह ललित जी, आपने तो हमें बीत जमाने में पहुँचा दिया! वो सीसे में ढले एक एक अक्षरों को लकड़ी के खानों से निकाल निकाल कर मैटर कम्पोज करना कितना अधिक समय खाने वाला काम हुआ करता था।
हमारे पिताजी स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया भी "पुष्पहार" नामक एक साप्ताहिक पत्रिका निकाला करते थे जिसकी छपाई ट्रेडल मशीन पर ही होती थी।
बहुत बढिया!
जवाब देंहटाएंpurane dino ki yaad taza ho gai,jab ham aus daur mey patrkaritaa karte they aur garv mahasoos karte the.badhiyaa reporting karte they, badhai uske liye,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट, ललित भाई !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आलेख. कहते भी है कि समय तो आगे बढ़ जाता है पर ये यादे ही है जो साथ रह जाती है. अक्सर सुहावनी यादे हमें तरोताजा कर देती है.
जवाब देंहटाएंआपके पास तो बेहतरीन यादों का खज़ाना है आप बस इसी तरह इसे हमारे साथ बाटते रहे और आप जैसे लोगो का तजुर्बा हमें बहुत कुछ सीखा सकता है ! वैसे मुझे आज ही पता लगा की पहले अखबार कैसे छपते थे ! इस जानकारी के लिए धन्यवाद !
जवाब देंहटाएं@soni garg
जवाब देंहटाएंकभी पुराने छापे खाने पर सचित्र पोस्ट लिखेंगे।
वैसे भी मैने कल नेट पर ट्रेडल मशीन की फ़ोटो ढुंढी तो नहीं मिली।
इसका मतलब यह है कि इस पर लिखा ही नहीं गया है।
पुराने दिनों की याद ताजा कर दी आपने
जवाब देंहटाएंमजा आ गया.
क्या दिन थे वो भी
सचमुच खूबसूरत यादें।
जवाब देंहटाएं................
व्यायाम और सेक्स का आपसी सम्बंध?
बहुत पुराना माल ढूंढ कर लाये हैं ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया ।
कितना मुस्किल होता होगा उस समय प्रिंटिंग करना.
जवाब देंहटाएंhit
जवाब देंहटाएंhit
जवाब देंहटाएंhit
जवाब देंहटाएंललित जी नमस्कार... अब थोडा फ्री हो गया हूँ.... अबसे रेगुलरली आऊंगा... कल आपसे फोन पर बात करता हूँ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी देती पोस्ट है....और अभी तक कटिंग सहेज कर रखी है....
जवाब देंहटाएंललित साहब, खजाने से कुछ देने का शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंसुनहरी यादें :)
जवाब देंहटाएंwah aaj to vastv me maja aa gya
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