कौन कहता है कि मजदूर की झोंपड़ी में राजकुमार नहीं जन्म लेते। गुदड़ी में ही लाल होते है और पूरी दुनिया के दिलों पर राज करते हैं। किसी भूखंड पर राज करने के साम-दाम की तिकड़म लगानी पड़ती है, लेकिन दिलों पर राज करने के लिए सिर्फ़ दिल देना पड़ता है।
ऐसे ही दिल देकर दिलदार कहाने वाले हमारे मित्र सखा राजकुमार सोनी हैं। जो भी काम हाथ में लेते हैं उसे दिल से करते हैं। दोस्तों के बीच में अपनी सह्र्दयता के लिए बहुत लोकप्रिय हैं। अभी के एक प्रकरण से इनकी जीवटता प्रदर्शित होती है, सच का साथ जान लगा कर भी देते हैं।
ऐसे ही दिल देकर दिलदार कहाने वाले हमारे मित्र सखा राजकुमार सोनी हैं। जो भी काम हाथ में लेते हैं उसे दिल से करते हैं। दोस्तों के बीच में अपनी सह्र्दयता के लिए बहुत लोकप्रिय हैं। अभी के एक प्रकरण से इनकी जीवटता प्रदर्शित होती है, सच का साथ जान लगा कर भी देते हैं।
अपने जीवन के सफ़र के विषय में बेबाकी से कहते हैं कि "भिलाई इस्पात सयंत्र के कोकवन में काम करने वाले मजदूर के घर पैदा हुआ राजकुमार" यह इतना ही बड़ा सच है कि जितना बड़ा सच जाबाला सत्यकाम ने गुरुकुल में प्रवेश के समय आचार्य जी के सामने कहा था।
आज लोग बड़ा पद पाकर जीवन में सफ़ल होने के बाद अतीत को भूल जाते हैं, लेकिन सच्चे मनुष्य वे होते हैं जो अतीत को साथ लेकर चलते हैं और उसके अनुभव से सफ़लता प्राप्त करते हैं। ये वास्तविक रुप से हरफ़नमौला हैं।
जब से मैं इन्हे जाना इनका हरफ़न मौला चरित्र ही मेरे सामने आया। इनकी लेखनी में दम भी है और खम भी है। बहु्मुखी प्रतिभा के धनी हैं।
आज लोग बड़ा पद पाकर जीवन में सफ़ल होने के बाद अतीत को भूल जाते हैं, लेकिन सच्चे मनुष्य वे होते हैं जो अतीत को साथ लेकर चलते हैं और उसके अनुभव से सफ़लता प्राप्त करते हैं। ये वास्तविक रुप से हरफ़नमौला हैं।
जब से मैं इन्हे जाना इनका हरफ़न मौला चरित्र ही मेरे सामने आया। इनकी लेखनी में दम भी है और खम भी है। बहु्मुखी प्रतिभा के धनी हैं।
इनके लेखन में एक प्यास झलकती है, अतृप्ति दिखती है, जो इन्हे चैन से बैठने नहीं देती, चाहे इनके नाटक हों या कविताएं। कविताओं में समाजिक समस्याएं साफ़ झलकती हैं। समाज के निचले स्तर पर जो घट रहा है वह इनकी कविताओं का विषय है।
मजदूरों के मोहल्ले से राजधानी तक का सफ़र अनुभवों से समृद्ध करता है और वही अनुभव इनके लेखन में स्पष्टत: प्रतीत होता है। सोने के पालने में जन्म से सोने वाले रचनाकार, जिसने कभी भूख गरीबी या अभाव नहीं देखा है वह कैसे लिखेगा कि गरीबी क्या होती है?
अभाव की जिंदगी क्या होती है, दुनिया में दो वक्त की रोटी का जतन करने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते है। क्या इसका अनुभव उसे मिलेगा?
जब वह लिखना चाहेगा तो कितना निष्प्राण लिखेगा समाज संदर्भ में। कविता,नाटक या साहित्य लिखना उसका शगल होता है और चार चाटुकार सिर्फ़ वाह वाही करते हैं।
लेकिन एक जमीन जुड़ा हुआ, धरती माँ की मिट्टी में खेला हुआ, जब लि्खेगा तो उसके लेखन से माटी की सौंधी खुशबू आएगी, ऐसा ही कु्छ माटी की खुशबू राजकुमार के लेखन में है।
मजदूरों के मोहल्ले से राजधानी तक का सफ़र अनुभवों से समृद्ध करता है और वही अनुभव इनके लेखन में स्पष्टत: प्रतीत होता है। सोने के पालने में जन्म से सोने वाले रचनाकार, जिसने कभी भूख गरीबी या अभाव नहीं देखा है वह कैसे लिखेगा कि गरीबी क्या होती है?
अभाव की जिंदगी क्या होती है, दुनिया में दो वक्त की रोटी का जतन करने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते है। क्या इसका अनुभव उसे मिलेगा?
जब वह लिखना चाहेगा तो कितना निष्प्राण लिखेगा समाज संदर्भ में। कविता,नाटक या साहित्य लिखना उसका शगल होता है और चार चाटुकार सिर्फ़ वाह वाही करते हैं।
लेकिन एक जमीन जुड़ा हुआ, धरती माँ की मिट्टी में खेला हुआ, जब लि्खेगा तो उसके लेखन से माटी की सौंधी खुशबू आएगी, ऐसा ही कु्छ माटी की खुशबू राजकुमार के लेखन में है।
लेकिन जिसने भूख,गरीबी और अभाव देखे हैं जीवन में उसकी लेखनी से स्वत: कालजयी रचनाएं एवं साहित्य निर्झर की तरह फ़ूट पड़ता है। जो अंतर शरमद की रुबाईयों एवं बहादुरशाह जफ़र की गजलों प्रकट होता है। वही अंतर मुझे राजकुमार सोनी एवं किसी खाए-अघाए सत्ता पोषित रचनाकार में दिखता है।
राजकुमार रंगमंच से भी जुड़े हैं। उनके अंदर एक सहज कलाकार बैठा है, वे किसी भी पात्र का अभिनय कभी भी सहज भाव से कर सकते हैं। वे यह कभी नहीं कहेंगे कि आज मेरा मूड नहीं है, क्योंकि जिसके अभिनय में कृतिमता होती है, बनावट होती है, या उसे दिए गए पात्र को निभाने में कठिनाई होती है वह "आज मूड नहीं है" का परदा लगाता है और बचने की कोशिश करता है। लेकिन राजकुमार के अंदर सहज रुप अदाकार उपलब्ध है। जो जीवंत हो जाता है और इनकी अदाकारी मैंने स्वयं देखी है।
राजकुमार रंगमंच से भी जुड़े हैं। उनके अंदर एक सहज कलाकार बैठा है, वे किसी भी पात्र का अभिनय कभी भी सहज भाव से कर सकते हैं। वे यह कभी नहीं कहेंगे कि आज मेरा मूड नहीं है, क्योंकि जिसके अभिनय में कृतिमता होती है, बनावट होती है, या उसे दिए गए पात्र को निभाने में कठिनाई होती है वह "आज मूड नहीं है" का परदा लगाता है और बचने की कोशिश करता है। लेकिन राजकुमार के अंदर सहज रुप अदाकार उपलब्ध है। जो जीवंत हो जाता है और इनकी अदाकारी मैंने स्वयं देखी है।
खुशी का अवसर है कि आज राजकुमार सोनी की पहली कृति समाज के सामने आई है। इनके लेखन का एक स्तर है, पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना परचम लहराने के बाद अब साहित्य लेखन के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति "बिना शीर्षक" के माध्यम से दे रहे हैं।
जब इस शीर्षक को मैने देखा तो सोचा कि लोग अपनी पुस्तकों का कु्छ न कुछ शीर्षक रखते हैं और यह पुस्तक "बिना शीर्षक" की। यह कैसे हो सकता है?
लेकिन जब गहराई में जाकर सोचा कि मनुष्य ऐषणाओं से घिरा होता है जीवन में। वित्तैषणा, पुत्रैषणा, और लोकैषणा। जो इन ऐषणाओं से दूर हो जाता है, जिन्हे यह ऐषणाएं नहीं व्याप्ति, वह वीतराग कहलाता है और वीतराग ही किसी के साथ सही न्याय कर सकता है।
जब इस शीर्षक को मैने देखा तो सोचा कि लोग अपनी पुस्तकों का कु्छ न कुछ शीर्षक रखते हैं और यह पुस्तक "बिना शीर्षक" की। यह कैसे हो सकता है?
लेकिन जब गहराई में जाकर सोचा कि मनुष्य ऐषणाओं से घिरा होता है जीवन में। वित्तैषणा, पुत्रैषणा, और लोकैषणा। जो इन ऐषणाओं से दूर हो जाता है, जिन्हे यह ऐषणाएं नहीं व्याप्ति, वह वीतराग कहलाता है और वीतराग ही किसी के साथ सही न्याय कर सकता है।
इससे स्पष्ट हो जाता है कि "बिना शीर्षक" की कृति में अवश्य ही इन्होने विषय के साथ सही निर्णय किया होगा। इस पुस्तक में इन्होने 25 नामचीन हस्तियों के विषय में लिखा है, उनके कार्यों एवं जीवन वृत्त को सलीके से प्रस्तुत किया है।
वैभव प्रकाशन रायपुर से प्रकाशित इस पुस्तक की भूमिका प्रसिद्ध साहि्त्यकार गिरीश पंकज जी ने लिखी है।हम इन्हे "बिना शीर्षक" के छपने पर हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं और राजकुमार भाई के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।
वैभव प्रकाशन रायपुर से प्रकाशित इस पुस्तक की भूमिका प्रसिद्ध साहि्त्यकार गिरीश पंकज जी ने लिखी है।हम इन्हे "बिना शीर्षक" के छपने पर हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं और राजकुमार भाई के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।
इन्हे "बिना शीर्षक" के लिए हार्दिक शुभकामनाएं .. राजकुमार जी निरंतर प्रगति करते रहें .. यही कामना है !!
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं "बिना शीर्षक" के लिए
जवाब देंहटाएं... बधाई व शुभकामनाएं!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ...पुस्तक का इन्तजार रहेगा.
जवाब देंहटाएंराजकुमार जी को बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंमुझे तो प्रसन्नता इस बात की है कि राजकुमार जी ने मुझे "बिना शीर्षक" का प्रूफ रीडिंग करने के काबिल समझा। ईश्वर राजकुमार जी को सदैव सफलता प्रदान करें!
जवाब देंहटाएंराजकुमार जी को बधाई....और इस जानकारी के लिए आभार
जवाब देंहटाएंराजकुमार जी को बहुत बहुत बधाइयाँ....जानकारी के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंराज कुमार सोनी जी को शुभकामनाएं "बिना शीर्षक" के लिए,सोनी जी अच्छा लिखते ही नहीं बल्कि एक नेक सम्बेदंशील इन्सान भी हैं |
जवाब देंहटाएं"बिना शीर्षक" के लिए बधाई !!!!
जवाब देंहटाएंराज कुमार सोनी जी को "बिना शीर्षक" के लिए शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंईश्वर सोनी जी को सदैव सफलता प्रदान करें!
राजकुमार जी को बधाई ..पुस्तक का जुगाड करते हैं.
जवाब देंहटाएंमेरी ओर से भी सोनी जी को ढेरों शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग लेखकों से आग्रह - हमारीवाणी.कॉम
जवाब देंहटाएंब्लॉग लेखकों का अपना ब्लॉग संकलक हमारीवाणी अभी साज-सज्जा की अवस्था पर है, इसलिए इसके फीचर्स पर संदेह करना उचित नहीं है. यह आपका अपना ब्लॉग संकलक है इसलिए यह कैसा दिखना चाहिए, कैसे चलना चाहिए, इन जैसी सभी बातों का फैसला ब्लॉग लेखकों की इच्छाओं के अनुसार ही होगा.
Feedcluster संस्करण के समय प्राप्त हुए ब्लॉग जोड़ने के आवेदनों को नए संस्करण में जोड़ने में आ रही समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हमारीवाणी के पूर्णत: बनने की प्रक्रिया के बीच में ही आप लोगों के सामने रखने का फैसला किया गया था.
अगर आप अपना कोई भी सुझाव देना चाहते हैं तो यहाँ दे सकते हैं अथवा "संपर्क करें" पर चटका (click) लगा कर हमें सीधें भेज सकते हैं. आपके हर सुझाव पर विचार किया जाएगा.
धन्यवाद!
हमारीवाणी टीम</
'बिना शीर्षक'ब्लाग जगत के चार महारथी ललित शर्मा, संजीव तिवारी, जीके अवधिया और श्यामकोरी उदय जैसे ब्लागरों के ब्लाग की शीर्षक बनी, 'बिना शीर्षक' सभी पत्र-पत्रिकाओं का भी शीर्षक बने इन्ही शुभकामनाओं के साथ ...
जवाब देंहटाएंललित भाई आपने भी काफी लिखा है, उन्हें किताबों के रूप में क्यों नहीं संजोना शुरू करते..
जवाब देंहटाएंसोच रहा था कि सीधा फोन पर ही बधाई दूँ.. मगर आप जबरदस्ती कर रहे हैं तो यहीं दे देता हूँ.. वैसे सोमवार को आपको भी फोन लगाया था पर आपने बंद कर रखा था शायद..
जवाब देंहटाएंrajkumar ki yah kitaab hit hogi, aisa yajkeen hai. lalit ki kalam chal gai hai, sanjiv tivari ne bhi likh diya hai. shyam kori uday ne bhi charchaa kar di hai. kitaab aane ke pahale yah haal hai, baad mey kyaa hoga..rajkumar soni ko agrim badhai. baad mey hogi munh dikhai.
जवाब देंहटाएंराजकुमार जी को हार्दिक बधाई अवम शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंयह "राजकुमार" उन्नति के पथ पर चल "राजा" बने यही शुभकामना है।
जवाब देंहटाएंबधाई हो।
बिना शीर्षक के लिए बुनी हैं शुभकामनाएं। वैसे दरी हो शुभकामनाएं। दरी वो हो जो आकाश हो।
जवाब देंहटाएंसंजीव भाई, ललित भाई, अवधियाजी, अजय व श्याम कोरी उदय
जवाब देंहटाएंदोस्तों इतना प्यार भी मत दो कि वह बार-बार आंखों पर पानी बनकर उतर आए
एकदम डूब सा गया हूं. वैसे तो सुबह ही पता चल गया था कि अजय सक्सेना (किताब का कवर पेज अजय ने ही बनाया है) ने आपको मेल किया है.. मेरे साथ रहकर वह भी आजकल चौकाने लगा है.
आप सबको इस प्यार के लिए धन्यवाद.. शुक्रिया..
अरे हां... दिन में संगीता स्वरुप जी से लंबी चर्चा हुई तो रात में ठीक 10.40 बजे लंदन से दीपक मशाल ने फोनकर बधाई दी. दीपक से भी लंबी बातचीत हुई.. बहुत अच्छा लगा. दीपक को मैं वैसे भी निजी तौर पर बहुत पसन्द करता हूं। इसकी दो वजह है एक तो वह मेरा सबसे ज्यादा ऊर्जावान दोस्त भी लगता है और भाई भी। आज जब वह बात कर रहा था तो लग रहा था कि बस अभी उसे जमकर धौल जमाऊं... ठीक वैसे ही क्या कर रहे हो आजकल वाले अन्दाज में. दीपक से मैंने पहले भी आग्रह किया था कि वह अपना लघुकथाओं का एक संग्रह निकाल ले. मेरे निवेदन पर उसने विचार करने का वादा किया है. कन्टेट के साथ इन दिनों बहुत कम लोग लघुकथाएं लिख रहे हैं.. दीपक लगातार सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करता रहा है.
शेष.. आप सबके प्यार से अभिभूत हूं.
बिना शीर्षक ही इसका शीर्षक है। आदरणीय राजकुमार जी को कोटि कोटि बधाई उनकी इस किताब के लिये। बस सभी ब्लॉगरों को एक बार पढ़ने मिल जाये। उन्हे पुन: बहुत बहुत शुभकामनाओं सहित।
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