आज जुलाई की पहली तारीख है, स्कूल जाने का दिन। जब पहली बार स्कूल में नाम लिखाने गए दादा जी के साथ तो इतना भय नहीं था। लेकिन जब एक साल बाद दूसरी क्लास की पढाई शुरु होने को थी तो स्कूल जाने का मन ही नहीं था। क्योंकि दो महीने की छुट्टी के बाद गाड़ी बड़ी मुस्किल से पटरी पर आती थी।
बस मास्टर छड़ी राम की शकल नजर आती थी। स्कूल का नाम लेते ही याद आते थे धोती वाले बड़े गुरुजी हाथ में छड़ी लिए स्कूल के मैदान में खड़े। पता नहीं छड़ी से कब किसका स्वागत हो जाए। वैसे बड़े गुरुजी पढाते बढिया थे।
उनकी कही बातें आज तक याद आती हैं। देखिए दिशा ज्ञान समझाने का तरीका -- "पुर्व दिशा में मुंह रक्खो तो पश्चिम पीठ बताता है, बायां उत्तर,दाहिना दक्षिण दिशा ज्ञान कहलाता है।" अब यह दिशा ज्ञान हमने 37साल पहले सीखा था और आज भी अक्षरश: याद है।
बस मास्टर छड़ी राम की शकल नजर आती थी। स्कूल का नाम लेते ही याद आते थे धोती वाले बड़े गुरुजी हाथ में छड़ी लिए स्कूल के मैदान में खड़े। पता नहीं छड़ी से कब किसका स्वागत हो जाए। वैसे बड़े गुरुजी पढाते बढिया थे।
उनकी कही बातें आज तक याद आती हैं। देखिए दिशा ज्ञान समझाने का तरीका -- "पुर्व दिशा में मुंह रक्खो तो पश्चिम पीठ बताता है, बायां उत्तर,दाहिना दक्षिण दिशा ज्ञान कहलाता है।" अब यह दिशा ज्ञान हमने 37साल पहले सीखा था और आज भी अक्षरश: याद है।
जब हम चौथी पांचवी क्लास में थे,हमारे स्कूल में तीन गुरुजी थे और कक्षाएं पांच थी। जिस दिन कोई भी एक गुरुजी छुट्टी में होता था उस दिन मेरी ड्यूटी पहली या दुसरी किसी एक क्लास को पढाने की होती थी। सरकारी स्कूल था इसलिए झाड़ू लगाने के लिए चपरासी भी नहीं था।
बड़ी क्लास के लड़कों की पाली बंधी थी रोज की 5-5 की, वे ही झाड़ू लगाते थे और सभी कक्षाओं में टाट पट्टी बिछाते थे। अमीर-गरीब एवं ऊंच नीच के भेद भाव के बिना सभी साथ बैठते और पढते थे। किसी के पास युनीफ़ार्म भी नहीं होती थी।
कोई हाफ़पैंट नही थी तो पट्टे वाला कच्छा ही पहन कर स्कूल आ जाता था और उसका नाड़ा दिन भर लटकता रहता था। गांव का स्कूल ऐसा ही होता था। मुझे स्कूल पहले पहुंचना पड़ता था क्योंकि चाबी मेरे पास ही रहती थी। एक दिन स्कूल की चाबियों को मेरे पास पापाजी ने देख लिया और मुझे डांटा कि स्कूल की चाबी तुम क्यों लेकर आते हो और दूसरे दिन स्कूल पहुंच कर बड़े गुरुजी के भी कान खींचे।
फ़ौजी से कौन मगजमारी करे, गुरुजी कहने लगे आज से चाबी नहीं देगें किसी को। पापा का कहना था कि चाबी बच्चे के पास है अगर स्कूल में चोरी हो जाए तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? उनका भी कहना सही था । यह तो हमारी बाल बुद्धि में आया ही नहीं।
बड़ी क्लास के लड़कों की पाली बंधी थी रोज की 5-5 की, वे ही झाड़ू लगाते थे और सभी कक्षाओं में टाट पट्टी बिछाते थे। अमीर-गरीब एवं ऊंच नीच के भेद भाव के बिना सभी साथ बैठते और पढते थे। किसी के पास युनीफ़ार्म भी नहीं होती थी।
कोई हाफ़पैंट नही थी तो पट्टे वाला कच्छा ही पहन कर स्कूल आ जाता था और उसका नाड़ा दिन भर लटकता रहता था। गांव का स्कूल ऐसा ही होता था। मुझे स्कूल पहले पहुंचना पड़ता था क्योंकि चाबी मेरे पास ही रहती थी। एक दिन स्कूल की चाबियों को मेरे पास पापाजी ने देख लिया और मुझे डांटा कि स्कूल की चाबी तुम क्यों लेकर आते हो और दूसरे दिन स्कूल पहुंच कर बड़े गुरुजी के भी कान खींचे।
फ़ौजी से कौन मगजमारी करे, गुरुजी कहने लगे आज से चाबी नहीं देगें किसी को। पापा का कहना था कि चाबी बच्चे के पास है अगर स्कूल में चोरी हो जाए तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? उनका भी कहना सही था । यह तो हमारी बाल बुद्धि में आया ही नहीं।
आज उसी स्कूल का रवैया बदल गया है। गुरुजी सर जी हो गये हैं। स्कूल में दो-दो चपरासी हैं। प्रत्येक क्लास में टीचर हैं और एक दो पहुंच वाले टीचर फ़ालतु ही रहते हैं। क्योंकि किसी नेता या बड़े अधिकार के रिश्तेदार हैं इसलिए अतिरिक्त शिक्षक बन कर तनखा खा रहे हैं। लेकिन जो शिक्षा स्तर स्कूल का हमारे समय में था वह नहीं है।
हेडमास्टर शेर है तो बच्चे बब्बर शेर हैं। कोई किसी की नहीं सुनता, स्टाफ़ में तालमेल नहीं सब घाल मेल है। इससे शिक्षा का स्तर गिर गया। अनुशासन खत्म होने से कोई किसी की सुनने वाला नहीं है। पहले अच्छा था कि सबकी अपनी जिम्मेदारी थी और सभी जिम्मेदारी का निर्वहन भी करते थे।
हेडमास्टर शेर है तो बच्चे बब्बर शेर हैं। कोई किसी की नहीं सुनता, स्टाफ़ में तालमेल नहीं सब घाल मेल है। इससे शिक्षा का स्तर गिर गया। अनुशासन खत्म होने से कोई किसी की सुनने वाला नहीं है। पहले अच्छा था कि सबकी अपनी जिम्मेदारी थी और सभी जिम्मेदारी का निर्वहन भी करते थे।
एक दिन दंतेवाड़ा से आते समय रास्ते में एक स्कूल देखा जहां एक गुरुजी और एक बहन जी बैठे हुए थे और कु्छ पालक भी दिखे, दो चार बच्चे भी थे। मैने उत्सुक्तावश गाड़ी रोकी और स्कूल में चला गया।
दोपहर का समय था कोई 2 बज रहे थे। मैने गुरुजी से दर्ज संख्या पूछी तो उसने 90 बताई, जब बच्चों के विषय में पूछा तो उन्होने बताया कि सब धान कटाई में गए हैं, उस समय धान काटने का सीजन चल रहा था.मैने गुरुजी उपस्थित आगन्तुकों के विषय में पूछा तो उसने बताया कि ये पालक हैं अपने बच्चों की हाजरी लगाने आए हैं।
अब यह एक ऐसा स्कूल देखा जहां विद्यार्थी तो मजदूरी पर जा रहे हैं और उनके पालक स्कूल में हाजरी दे रहे हैं। इसका कारण पता चला कि प्रत्येक बच्चे को चावल मिलते हैं अगर गैरहाजरी लगेगी तो वे नहीं मिलेगें।
दोपहर का समय था कोई 2 बज रहे थे। मैने गुरुजी से दर्ज संख्या पूछी तो उसने 90 बताई, जब बच्चों के विषय में पूछा तो उन्होने बताया कि सब धान कटाई में गए हैं, उस समय धान काटने का सीजन चल रहा था.मैने गुरुजी उपस्थित आगन्तुकों के विषय में पूछा तो उसने बताया कि ये पालक हैं अपने बच्चों की हाजरी लगाने आए हैं।
अब यह एक ऐसा स्कूल देखा जहां विद्यार्थी तो मजदूरी पर जा रहे हैं और उनके पालक स्कूल में हाजरी दे रहे हैं। इसका कारण पता चला कि प्रत्येक बच्चे को चावल मिलते हैं अगर गैरहाजरी लगेगी तो वे नहीं मिलेगें।
अब तो सरकारी स्कूलों का हाल बीएसएनएल के कनेक्शन एवं अधिकारियों जैसा हो गया है। काम करो या न करो, तनखा तो मिलनी ही है।
अगर उपर से कमाई करनी है तो नेटवर्क खराब रखो जिससे प्राईवेट कम्पनी वाले मंथली पहुंचाते रहेंगे। अगर सरकारी स्कूल वाले ही गुणवत्ता ले आएगें पढाई में तो प्राईवेट स्कूल वालों का धन्धा चौपट नहीं हो जाएगा?
अगर उपर से कमाई करनी है तो नेटवर्क खराब रखो जिससे प्राईवेट कम्पनी वाले मंथली पहुंचाते रहेंगे। अगर सरकारी स्कूल वाले ही गुणवत्ता ले आएगें पढाई में तो प्राईवेट स्कूल वालों का धन्धा चौपट नहीं हो जाएगा?
पूर्व में हम शिक्षा के साथ ज्ञान भी प्राप्त करते थे लेकिन अब केवल व्यावसायिक शिक्षा हो गयी है। इसलिए क्या गुरु और क्या छात्र प्रारम्भ से ही आर्थिक सोच रखते हैं।
जवाब देंहटाएंसरकारी स्कूलों का हाल बीएसएनएल के कनेक्शन एवं अधिकारियों जैसा हो गया है : बिल्कुल सही कहा...बहुत बढ़िया आलेख.
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेखन।
जवाब देंहटाएंमहराज पाय लागी।पुरानी यादें ताजा हो आईं। कैसी होती थी पहाड़े की रटाई। पउआ अद्धा पौना सवइया, ड्योढ़ा और अढ़ैया। ये सब याद होते थे जल्दी क्या ख्याल है भइया? मजा आ गया। नाइस।
जवाब देंहटाएंस्कूल की पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं....गांव के हाल का अच्छा चित्रण किया है..
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट!
जवाब देंहटाएंललित जी, आप अभनपुर जैसे ग्रामीण क्षेत्र में हैं इसलिये सरकारी स्कूल की बात भी कर लेते हैं। राजधानी रायपुर में तो गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में नहीं भेजना चाहता।
:-) वाह गुरु जी!
जवाब देंहटाएंस्कूल की याद ताजा कर दी आपने। वैसे अपन तो आज भी अपने को स्टूडेंट ही मानते हैं। अच्छी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंयही हाल है सब जगह
जवाब देंहटाएंअलग-अलग भाषायें और पहनावा होने के बाद भी सारा भारत एक जैसा है।
प्रणाम
अब तो सरकारी स्कूलों का हाल बीएसएनएल के कनेक्शन एवं अधिकारियों जैसा हो गया है। काम करो या न करो, तनखा तो मिलनी ही है। अगर उपर से कमाई करनी है तो नेटवर्क खराब रखो जिससे प्राईवेट कम्पनी वाले मंथली पहुंचाते रहेंगे। अगर सरकारी स्कूल वाले ही गुणवत्ता ले आएगें पढाई में तो प्राईवेट स्कूल वालों का धन्धा चौपट नहीं हो जाएगा?..........बिल्कुल सही कहा...बहुत बढ़िया आलेख
जवाब देंहटाएंअजी हमारे गुरु जी प्यार भी बहुत करते थे ओर मुरगा भी धुप मै खुब बनाते थे, फ़िर रोहतक मै आये तो हमारे हेड मास्टर जी ने प्राथाना स्थल पर बोल दिया कि मेने सब को आदमी बनाना है, जो नही बनाना चाहता वो अभी स्कुल से चला जाये, वर्ना फ़िर मोका नही मिलेगा, ओर सच कहुं उन के हाथो पढे ओर पीटे लोग आज बहुत उच्च पदो पर है... आज कल की तो पता नही भारत मै क्या हो रहा है, वो आज थोडा बहुत आप के लेख से पता चला...
जवाब देंहटाएंअब तो सरकारी स्कूलों का हाल बीएसएनएल के कनेक्शन एवं अधिकारियों जैसा हो गया है। काम करो या न करो, तनखा तो मिलनी ही है। अगर उपर से कमाई करनी है तो नेटवर्क खराब रखो जिससे प्राईवेट कम्पनी वाले मंथली पहुंचाते रहेंगे। अगर सरकारी स्कूल वाले ही गुणवत्ता ले आएगें पढाई में तो प्राईवेट स्कूल वालों का धन्धा चौपट नहीं हो जाएगा?
जवाब देंहटाएंसत्य बात....
मजा आ गया पढकर,लिखते रहिऐ
जवाब देंहटाएंसुप्रसिद्ध साहित्यकार और ब्लागर गिरीश पंकज जी का इंटरव्यू पढने के लिऐ यहाँ क्लिक करेँ >>। एक बार जरुर पढेँ
अच्छा संस्मरण है । सब अपने स्कूल के दिन याद करने लग गए ।
जवाब देंहटाएंवैसे यही हाल आजकल कॉलिजों में भी है यहाँ तक की मेडिकल कॉलिज में भी।
अजित गुप्ताजी के विचारों से सहमत हूँ ...आज शिक्षा व्यवसायिक हो गई है ....
जवाब देंहटाएंshandar,majaa aa gaya aur kuchh haqikat bhi lekin bhaiya sab likhe bas ye nahi likhe ki aapki prathmik shikshhaa kidhar kaun se gaon me hui jaha ka kissa aapne shuru me likha...
जवाब देंहटाएंनहीं जायेंगे, बताओ क्या कर लोगे?
जवाब देंहटाएंहाँ हमारे ज़माने मे भी स्कूल पहली तारीख को हे खुलता था ।
जवाब देंहटाएंBadhiya post
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