बुधवार, 28 जुलाई 2010

हमारा लोकतंत्र एवं मल्लिका शेरावत का डांस

दो दिनों पूर्व लोकतंत्र पर गरमा-गरमा बहस चल रही थी,मैं बैठकर वक्ता महानुभावों को सुन रहा था। सभी ने अपने मन की भड़ास निकाली। लेकिन वक्ता वही थे जो मंहगे से मंहगे होटल में ठहरते हैं और मंहगी से मंहगी गाड़ी में चलते हैं,लेकिन बात गरीबों एवं गरीबी की करते हैं।

प्रत्येक गरीब चाहता है वह अमीर बने, अगर अमीर नहीं बन पाया तो कम से कम दो वक्त के खाने की चिंता तो न रहे। उसका तो इंतजाम हो जाए। आज देश में जिस लोकतंत्र की स्थापना के लिए हमारे पूर्वजों ने अपना बलिदान दिया था, वह लोकतंत्र कहीं दिखाई नहीं देता।

वर्तमान में अमीर और भी अमीर होता जा रहा है और गरीब और गरीब होता जा रहा है। अमीर-गरीब के बीच एक गहरी खाई बनती जा रही है।  

एक बरसात में मेरे जानकार की झोंपड़ी टूट गयी। वह मेरे पास आया और उसने अपनी परेशानी बताई तो मैने उसे तत्कालीन महामहिम राज्यपाल के समक्ष अपनी फ़रियाद करने कहा। उसने महामहिम राज्यपाल के समक्ष अपनी समस्या बताई, महामहिम ने उसकी समस्या सुनकर अपने सचिव से उसे ज्यादा से ज्यादा आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के लिए कहा।

वह खुशी-खुशी मेरे पास आया और उसने सारी बातें बताई। कुछ दिनों बाद उसके पास तहसीलदार वस्तु स्थिति की जांच करने पहुंचा, जांच करके तहसीलदार ने उसे मात्र 800 रुपए की आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। जबकि उसका नुकसान लगभग 20,000 रुपए का हुआ था और वह पुन: मकान बनाने में सक्षम नहीं था।

मैने तहसीलदार से पूछा तो उसने कहा कि पूरा मकान ध्वस्त होने पर अधिक से अधिक 3500 रुपए तक की ही सहायता उपलब्ध कराई जा सकती है।

इसका एक दूसरा पक्ष हम देखते हैं कि हमारे अधिकारी जब मीटिंग में प्रदेश से बाहर जाते हैं तो फ़्लाईट से जाकर मंहगे से मंहगे फ़ाइव स्टार होटलों में ठहरते हैं, जहां एक दिन के कमरे का किराया 20,000 से 50,000 हजार तक होता है, एक काफ़ी 300 रुपए की और भोजन लगभग 5000 में होता है।

वहीं एक गरीब अपना जीवन बसर रोजाना 50 रुपए में कर रहा है। कितनी घोर विषमता है। तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट में बताया गया है कि एक अनुमान के आधार पर भारत में 25-30 करोड़ लोग भूखे सोते हैं, भारत में 25 हजार ऐसे अमीर हैं जिनके पास 2करोड़ से उपर की गाड़ियाँ हैं।

भारत में  20% लोगों के पास देश के 90% संसाधनों पर कब्जा है। 80% लोगों के पास मात्र 4% संसाधनों पर कब्जा है। कितनी भयावह स्थिति है आर्थिक असमानता की। 

एक आंकड़े के हिसाब से 2004 की लोक सभा में 154 करोड़पति सांसद थे, वर्तमान लोक सभा में 306 करोड़पति सांसद हैं और इन सभी सांसदों की कुल संपत्ति 28 सौ करोड़ रुपए की है, इनमें से 250 आम आदमियों की पार्टी कहे जाने वाले दलों से हैं।

जो हमेशा चुनाव में दलित-गरीब और दबे कुचले लोगों के उत्थान की बात कह कर वोट मांगते हैं तथा इसी भारत में लगभग 70 करोड़ से उपर लोग प्रतिदिन 12 से 20 रु की राशि में अपना घर चला रहे हैं।

कितनी ज्यादा विषमता है। अब आप देख सकते हैं कि गरीबों का प्रतिनिधित्व कितने अमीर सांसद लोग कर रहे हैं। क्या इस तरह से अमीर जन प्रतिनिधि गरीबों के प्रति समर्पित रह सकते हैं। हर बार गरीब छला जाता है। 

देश की 90 प्रतिशत गरीब आबादी का प्रतिनिधित्व करोड़पति और अरबपति लोग कर रहे हैं,  किसी को गरीब है, अच्छा काम करेगा, सोच कर जनता चुन कर भेजती है ,वह भी कुछ दिनों के बाद 10-12 लाख की गाड़ी में घुमने लगता है।

ये तो सांसद जैसे बड़े पद की बात हो रही है ,अगर कोई छोटे से पद में पहुंचता है तो उसके पास 5-7लाख की गाड़ी तो एक-दो महीने के भीतर आ जाती है। ऐसी कौन सी जादु की छड़ी है जिसे घुमाते ही अमीर हो जाते हैं?

इसका सीधा-सीधा मतलब यही है कि भ्रष्टाचार अपनी सीमाएं लांघ चुका है और आम आदमी टीवी पर बैठ कर मल्लिका शेरावत का डांस देख रहा है, उसे कोई मतलब नहीं कहां क्या हो रहा है।

बस एक ही सवाल उठता है कि हमारे देश का लोकतंत्र कहां जा रहा है?

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत भीषण विषमता है मगर किया क्या जाये. आपने आंकड़ों सहित अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया..बस प्रश्न तो यही है: हमारे देश का लोकतंत्र कहां जा रहा है?????

    जवाब देंहटाएं
  2. सार्थक व विचारणीय प्रस्तुती ,सामाजिक असंतुलन की भयावहता सरकारी भ्रष्टाचार की वजह से पैदा हुयी है और देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति जैसे पदों पर बैठे लोग भी असम्बेदंशील बने हुए है |

    जवाब देंहटाएं
  3. तहसीलदार जी ने जाँच के लिए जाने का का बिल शायद ८००० रु. तो बनाया ही होगा !

    जवाब देंहटाएं
  4. यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हमारे देश में उनका सम्मान होता है जिनका कि उनकी हरकतों की वजह से हर कदम पर अपमान होना चाहिए - आज के नेताओ को शर्म भी नहीं आती अपनी हरकतों पर !
    इन लोगो को जो जनता चुन कर नेता बनाती है यह बाद में उस जनता ही से बच कर चलते है ! सिर्फ़ एक ही मुद्दा है इन का सिर्फ़ अपना पेट भरना .........जनता भूखी है तो रहे.......उनकी की बला से !

    जवाब देंहटाएं
  5. bahut satik post.....aarthik vishamta kaa sahi chitran......chakit hun.....

    जवाब देंहटाएं
  6. यह इस देश का बहुत बड़ा दुर्भाग्य है। एक बार फिर से क्रांति की आवश्यकता है।

    जवाब देंहटाएं
  7. कुछ लोग कहते हैं ..इस देश को चाहिए एक हिटलर ...क्या वाकई? लगता तो अब मुझे भी है ....भ्रष्टाचार सीमाएं लांघ चुका है अब चाहिए एक क्रांति.

    जवाब देंहटाएं
  8. शिखा जी की बात से सहमत हूँ। हम लोग लोक तन्त्र के काबिल ही नही। पंजाबी मे एक कहावत है
    भठ पिया सोना जेहडा कन्ना नूँ खावे।\ार्थात भाड मे जाये ऐसा सोना जो कानो को ही खाने लगे। अच्छा विषय उठाया है। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत भयानक तथ्य प्रस्तुत किये हैं ।
    लेकिन एक कडवे सच की तरह।
    पर कौन सुनता है ।

    जवाब देंहटाएं
  10. क्या आप भी ना बेकार परेशान हो रहे हैं... किसने कहा कि लम्बी कारों में चलने वाले गरीब नहीं.. वही तो सबसे ज्यादा गरीब हैं 'दिल' से

    जवाब देंहटाएं
  11. आपने आंकड़ों सहित अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया..

    जवाब देंहटाएं