सावन का महीना हम सब मित्रों का घुमने का ही होता है, एक मार्ग निर्धारित करके सर्कुलर टिकिट बनाकर घुमने के लिए निकल जाते हैं। मुख्य लक्ष्य रहता है बैजनाथ धाम।
सावन के पहले दिन ही हम लोग गंगा जल चढा देते हैं। कुछ वर्षों पहले हमने यात्रा का मार्ग निर्धारित किया था। रायपुर से इलाहाबाद, इलाहाबाद से अयोध्या, अयोध्या से बनारस, बनारस से क्युल होते हुए सुल्तानगंज, सुल्तान गंज से कांवर लेकर पदयात्रा करते हुए देवघर (बैजनाथ धाम) और देवघर से अपने घर रायपुर वापसी।
हमने अयोध्या में 3 दिन रुकने का कार्यक्रम बनाया। अयोध्या स्टेशन से जैसे ही हम बाहर निकले तो देखा कि ठेलों पर लोग सिगड़ी लगा कर लिट्टी सेंक रहे थे। बस अपने को मनचाही मुराद मिल गई क्योंकि लिट्टी-चोखा खाए बहुत दिन हो गये थे।
हम जब बिहार के दौरे पर थे, तभी लिट्टी का स्वाद लिया था। तब से फ़िर लिट्टी-चोखा खाने की इच्छा थी। जो अयोध्या में पूरी हो रही थी। हमने बैग रख कर सबसे पहले लिट्टी का ही स्वाद लिया। फ़िर बिड़ला मंदिर की धर्मशाला पहुंचे।
लिट्टी चोखा की दुकान (रायपुर स्टेशन) |
सावन के पहले दिन ही हम लोग गंगा जल चढा देते हैं। कुछ वर्षों पहले हमने यात्रा का मार्ग निर्धारित किया था। रायपुर से इलाहाबाद, इलाहाबाद से अयोध्या, अयोध्या से बनारस, बनारस से क्युल होते हुए सुल्तानगंज, सुल्तान गंज से कांवर लेकर पदयात्रा करते हुए देवघर (बैजनाथ धाम) और देवघर से अपने घर रायपुर वापसी।
हमने अयोध्या में 3 दिन रुकने का कार्यक्रम बनाया। अयोध्या स्टेशन से जैसे ही हम बाहर निकले तो देखा कि ठेलों पर लोग सिगड़ी लगा कर लिट्टी सेंक रहे थे। बस अपने को मनचाही मुराद मिल गई क्योंकि लिट्टी-चोखा खाए बहुत दिन हो गये थे।
हम जब बिहार के दौरे पर थे, तभी लिट्टी का स्वाद लिया था। तब से फ़िर लिट्टी-चोखा खाने की इच्छा थी। जो अयोध्या में पूरी हो रही थी। हमने बैग रख कर सबसे पहले लिट्टी का ही स्वाद लिया। फ़िर बिड़ला मंदिर की धर्मशाला पहुंचे।
अगले पड़ाव बनारस में हमें 2 दिन रुकना था। वहां पर भी हमने लिट्टी वाला ढुंढ ही लिया और दो दिन सुबह लिट्टी का ही नास्ता किया। उसके बाद से हमे लिट्टी खाने नहीं मिली।
एक दिन हमने घर में ही प्रयोग करके देखा। श्रीमती जी मायके गयी हुई थी तो रसोई घर को प्रयोग शाला बनाने पर कोई खतरा नहीं था। पहले बेटियों से पूछा कि उन्हें लिट्टी-चोखा खाना है क्या?
उन्होने हाँ में जवाब दिया तो मैने उन्हे भी लिट्टी चोखा बनाने में शामिल कर लिया। माता जी ने कंडे जलाए और हमने लिट्टी चोखा बनाया। कंड़ों में बढिया बाटी जैसे उन्हे सेंक लिया और चोखा के साथ खाने का आनंद लिया। बहुत ही मजा आया। दोपहर का भोजन का कार्यक्रम स्थगित हो गया। फ़िर हमने कभी लिट्टी चोखा नहीं खाया।
जब मैं बिलासपुर जाने के लिए रायपुर स्टेशन पहुंचा तो देखा कि स्टेशन के पास मंदिर के पीछे एक आदमी लिट्टी सेंक रहा था। मेरे पास कुछ समय था इसलिए टिकिट लेकर सीधा उसके पास पहुंचा।
लिट्टी चोखा लिया और वहीं उसके पास बैठकर खाने लगा। गरम-गरम लिट्टी चोखा था। लेकिन स्वाद में वह आनंद नहीं आया जो हम पहले ले चुके थे।
मैने उससे पूछा कि यह दुकान कब से लगा रहे हो तो उसने जवाब दिया 19 साल से। इतने दिनों से लिट्टी चोखा की दुकान वहां पर लग रही है और मुझे कभी दिखी ही नहीं।
साल में कम से कम 50 बार हम भी स्टेशन जाते ही होगें। कोई बात नहीं अगर निंगाह नहीं पड़ी तो क्या हुआ, आज तो देख लिया।
मैने उससे लिट्टी चोखा पैक करवाया और अरविंद झा के लिए रख लिया। क्योंकि हमारा अगला पड़ाव वही था। बिलासपुर जाकर अरविंद जी को लिट्टी चोखा खिलाया तो बहुत खुश हुए। मजे से खाए।
लिट्टी चोखा लिया और वहीं उसके पास बैठकर खाने लगा। गरम-गरम लिट्टी चोखा था। लेकिन स्वाद में वह आनंद नहीं आया जो हम पहले ले चुके थे।
अरविंद झा |
साल में कम से कम 50 बार हम भी स्टेशन जाते ही होगें। कोई बात नहीं अगर निंगाह नहीं पड़ी तो क्या हुआ, आज तो देख लिया।
मैने उससे लिट्टी चोखा पैक करवाया और अरविंद झा के लिए रख लिया। क्योंकि हमारा अगला पड़ाव वही था। बिलासपुर जाकर अरविंद जी को लिट्टी चोखा खिलाया तो बहुत खुश हुए। मजे से खाए।
हर प्रदेश की के खाने की अपनी पहचान होती है अपना स्वाद होता है और खाने में मामले में तो हम बहुत ही शौकीन हैं। दक्षिण का खाना हो या उत्तर भारत का सभी मुझे चलता है। सिर्फ़ मैदा की रोटी नहीं खा सकता। क्योंकि बहुत ही तकलीफ़ देती है। एक बार खाकर भुगत लिए थे।
विगत वर्ष हमें पांडीचेरी एक कार्यक्रम में जाना था। गुड़गांव से हमारे मित्र परमानंद और मुकेश जी को भी वहां पहुंचना था। पहले कार्यक्रम की 15 फ़रवरी का निर्धारित किया गया था। फ़िर उसमें परिवर्तन करके 17 फ़रवरी कर दिया गया। इन्होने दिल्ली से अपनी फ़्लाइट की टिकिट 14 फ़रवरी की एक महीने पहले ही बुक कर ली थी।
मुझे रायपुर से ट्रेन से पहुंचना था। मैने अपनी टिकिट 15 फ़रवरी की करवाई थी। उनकी टिकिट नान रिफ़ंडेबल थी तो उन्हे मजबूरी में 14 तारीख को पांडीचेरी पहुंच 3 दिन और रुकना पड़ गया।
परमानंद जी ने मुझे फ़ोन करके कहा कि यहां तो रोटी ही नहीं मिल रही है। इटली, डोसा, बड़ा, चावल, मिल रहा है। एक जगह मैदा का पराठा खाना पड़ा। तो मुझे घर से रोटी बनाकर उनके लिए पांडीचेरी ले जाना पड़ा।
28 घंटे बाद उन्होने रोटी खाई और अगले दिन के लिए भी बचा ली। हमने तो वहीं के भोजन से काम चला लिया। लेकिन मुझे यह समस्या नहीं होती।
अब किसी दिन फ़िर लिट्टी चोखा बनाने का कार्यक्रम रखते हैं। अपना हाथ जगन्नाथ। क्या करें? लिट्टी-चोखा देखकर कंट्रोल ही नहीं होता ।
परमानंद जी ने मुझे फ़ोन करके कहा कि यहां तो रोटी ही नहीं मिल रही है। इटली, डोसा, बड़ा, चावल, मिल रहा है। एक जगह मैदा का पराठा खाना पड़ा। तो मुझे घर से रोटी बनाकर उनके लिए पांडीचेरी ले जाना पड़ा।
28 घंटे बाद उन्होने रोटी खाई और अगले दिन के लिए भी बचा ली। हमने तो वहीं के भोजन से काम चला लिया। लेकिन मुझे यह समस्या नहीं होती।
अब किसी दिन फ़िर लिट्टी चोखा बनाने का कार्यक्रम रखते हैं। अपना हाथ जगन्नाथ। क्या करें? लिट्टी-चोखा देखकर कंट्रोल ही नहीं होता ।
वाह यह तो यम यम पोस्ट है -मुझे भी बट्टी (लिट्टी ) चोखा (भरता ) बहुत पसंद है !
जवाब देंहटाएंसावन का महीना हम सब मित्रों का घुमने का ही होता है,
जवाब देंहटाएं@ धरती पर आते समय बड़ी तसल्ली से बढ़िया मुक्कदर लिखवाकर लाये हो महाराज :)
हमने भी आनंद उठाया है भाई साहब!
जवाब देंहटाएंलिट्टी चोखा दुकानों में भी मिलते हैं ...!!
जवाब देंहटाएंहोता तो बहुत कुछ हमारी मसालेदार बाटियों जैसा ही है मगर सत्तू का मिश्रण इसे कुछ विशेष बनाता है ...बहुत समय हुआ इसका रसास्वादन किये ...
इधर तो इन दिनों कत्त-बाफला की धूम होती है। लेकिन बरसात के इंतजार ने रोक रखा है।
जवाब देंहटाएंअच्छी भावनात्मक पोस्ट ,लिट्टी व चोखा के क्या कहने ,शानदार -जानदार ...
जवाब देंहटाएं@वाणी गीत जी
जवाब देंहटाएंबाटी,चुरमा या बाफ़ला बाटी को हजम करने में बहुत समय लगता है क्योंकि बिना घी के यह खाई नहीं जा सकती।
जबकि लिट्टी बिना घी के भी खाई जाती है। इसलिए हजम होने में आसानी होती है। फ़िर सभी प्रदेशों के हवा-पानी का असर भोजन बनाने की प्रक्रिया पर पड़ता है।
36 गढ में पानी में लोहे की मात्रा सामान्य से कु्छ अधिक होने से घी हजम नहीं होता। वहीं राजस्थान,हरियाणा,पंजाब में लक्कड़ पत्थर सब हजम हो जाता है।
इंटरनेशनल लिट्टी चोखा , जो खाये पाये ना धोखा
जवाब देंहटाएंबोलो बाबा बैजनाथ की जय
वाह वाह।
जवाब देंहटाएंलालच आ गई...उफ्फ!
जवाब देंहटाएंमहराज पाय लागी। ये काये लिट्टी चोखा ए जी। हम पहिली बार एखर नाव सुनत हन। कहूं अंगाकर रोटी त नोहै? थोरकिन एखर बारे म बताबे। महू कइहौं नोनी के दाई ल बनाये बर।
जवाब देंहटाएंहमने भी पटना में खाया था, चोखा तो घर में बना लेते हैं, पर लिट्टी के लिये तरसे हुए हैं, देखते हैं कब खाने को मिलती है।
जवाब देंहटाएंदाल बाटी का ध्यान ना दिलाएं ..मुंह में पानी आ जाता है
जवाब देंहटाएंहम भी शिकागो में महीने में एक बार तो बनाकर खा ही लेते है !
lalit bhai...aapka vo litti chokhaa main bhula nahi hun.....ab ek baar yadi aap padhaaren to ghar me bhi banaayaa jaayegaa.
जवाब देंहटाएंलिट्टी-चोखा के क्या कहने? laisi post mat lagaya karon lalit, ki muh mey pani aa jay. main bhi do-char baar kha chuka hoo. iska aanand hi alag hai. ek baar fir khana hai. magar kab...?
जवाब देंहटाएंदिल्ली में भी मिलता है लिट्टी चोखा और बहुत ही स्वादिष्ट होता है खासतौर पर दिल्ली में प्रगति मैदान में लगने वाले व्यापार मेले में जो लिट्टी चोखा मिलता है उसका स्वाद तो भुलाया ही नहीं जाता ! दाल बाटी भी कुछ हद तक एससी हो होती है फर्क बस घी का होता है !!!
जवाब देंहटाएं...matalab aap dono akele akele khaa liye ho !!!!
जवाब देंहटाएंlitti chokha ke naam se hi mere muh me pani aa gaya.behad swadist
जवाब देंहटाएंललित भाई,
जवाब देंहटाएंआपने पोस्ट से ही लिट्टी का चोखा स्वाद मुंह में पहुंचा दिया...
बाद में बस जलजीरा आइसक्रीम की कसर रह गई...
जय हिंद...
इस बार भारत आने पर पहला काम लिट्टी खाने का ...चोखा तो सुना है..लालू जी के मुंह से कई बार :) ..खाया भी है शायद ..पर लिट्टी ...इतना सुना है पर देखी भी नहीं आजतक ..आखिर हम भी देखें है क्या है ये.
जवाब देंहटाएंमेरे पसंदीदा व्यंजनों में से एक है लिट्टी चीखा , वैसे इसे पूर्वांचल का फास्ट फ़ूड भी कहा जाता है और सबसे मजे की बात तो यह है कि मेरी श्रीमती जी इसे खूब मन से बनाती है , आपने ऐसे समय में याद दिला दिया जब वे मइके गयी हुयी हैं , क्या करूं ?
जवाब देंहटाएंवाह! टाईटल से ही मुंह में पानी आगया.
जवाब देंहटाएंरामराम
are wah kya bat hai, ye to mujhe bhi bahut badhiya lagta hai, bahut dino se khaya nahi, aap ne yad dila diya soch raha hun ki ab kha hee liya jaye
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा पोस्ट ............कभी हमे भी खिलाइए लिट्टी चोखा !
जवाब देंहटाएंआपने तो सबको ही प्रेरित कर दिया लिट्टी चोखा खाने को...
जवाब देंहटाएंअरे अरे अकेले अकेले खा कर हमे बता रहे है, लेकिन मैने तो कभी देखा भी नही, अगर बनाने की विधि बता दे तो हम भी लकडी के कोयलो पर बना सकते है, क्योकि आज कल यहां गर्मिया चल रही है ओर हमारी गिरिल कभी कभी काम मै आती है, ओर यह जरुर बताये कि इसे खाना केसे है किस सब्जी के संग ओर वो सब्जी केसे बनानी है, हमारी बीबी को बहुत शोक है नये नये खाने बनाने का.
जवाब देंहटाएंराम राम
लिट्टी चोखा की बात ही कुछ और है...
जवाब देंहटाएंकभी बलिया की खाकर देखियेगा
I should appreciate your patience for writing best articles.
जवाब देंहटाएंपहली बार गुड़गांव मे स्वाद चखा था बहुत बढिया लगा।अब आपके साथ ही खायेंगे।
जवाब देंहटाएंअपनी टिप्पणी लिखें... वाह वाह क्या लिट्टी चोखा
जवाब देंहटाएं